Last Updated: Tuesday, February 18, 2014, 15:43

नई दिल्ली : वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने संप्रग के आर्थिक प्रबंध के आलोचकों को खारिज करते हुये कहा कि इस सरकार ने अर्थव्यवस्था को कठिन परिस्थितियों से उबारा है और इसे पुन: उच्च वृद्धि की राह पर स्थापित किया है। चिदंबरम ने कल पेश 2014-15 के अंतरिम बजट को लोकप्रियता हासिल करने की कवायद बताये जाने को भी खारिज किया और कहा कि सरकार अन्य देशों की तरह पिछले एक-दो साल से लगातार कोशिश कर रही है कि संकट के समय में स्थितियों को कैसे संभाला जाए।
चिदंबरम ने कहा, ‘‘साफ बात यह है कि हम पिछले एक-दो साल से दुनिया की अन्य सरकारों की तरह ही एक तरह से बचाव के काम में लगे हुये हैं। मुझे यह कहते हुये तकलीफ होती है कि हम इसमें अकेले नहीं हैं। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘हर वित्त मंत्री यही कह रहा है कि वह बचाव के काम में लगा हुआ है, इसलिए मैंने 2013 के बजट में जो किया और 2014 के अंतरिम बजट में जो प्रस्ताव मैंने किये हैं, उन्हें अर्थव्यवस्था को ऐसे समय आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर पुन: स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए, जबकि विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति नाजुक है। मुझे लगता है कि हम इस प्रयास में काफी कुछ कामयाब रहे हैं।’’
वित्त मंत्री चिदंबरम ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था ने पहली तिमाही में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, दूसरी तिमाही में यह 4.8 प्रतिशत हो गयी और सीएसओ (केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन) के अनुमानों के अनुसार तीसरी और चौथी तिमाही में वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत रहने की संभावना है।
वित्त मंत्री से जब यह पूछा गया कि वह अपने बजट को किस तरह से परिभाषित करना चाहेंगे, तो उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 18 महीनों में इक्के-दुक्के देश ही ऐसा करने में कामयाब रहे हैं। इसलिए मैं यह नहीं कहता कि जो कुछ हासिल हुआ है, उससे मैं पूरी तरह से खुश हूं, लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि हमने जो लक्ष्य निर्धारित किये थे, उसमें हमें काफी कामयाबी हासिल हुयी है। मैंने अपने बजट भाषण के आखिर में जो दस सूत्रीय एजेंडा पेश किया है, यदि आगे आने वाली सरकारों ने उस पर अमल किया तो अर्थव्यवस्था पुन: उच्च वृद्धि की राह पर आ जाएगी।’’ उनसे कहा गया है कि आपके आलोचक कहते हैं कि भारत की समस्या केवल विदेश जनित नहीं है, तो उन्होंने कहा, ‘‘मं भी ऐसा नहीं कह रहा हूं लेकिन आज जो समस्या भारत के सामने है, और जो समस्या दुनिया के देश झेल रहे हैं, वह मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय परिस्थतियों के कारण है।’’ चिदंबरम ने माना कि पिछले समय में कुछ गलतियां जरूर हुयी हैं।
चूक कहां हुई, इस सवाल पर वित्त मंत्री ने अर्थशास्त्री टी एन श्रीनिवासन के एक लेख का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि 2008 के बाद का पहला वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज तो संभवत: जररी था पर गहराई से विश्लेषण किया जाए तो दूसरे और तीसरे प्रोत्साहन पैकेजों की आवश्यकता नहीं थी। वित्त मंत्री ने साथ में यह भी जोड़ा कि, ‘‘लेकिन यह टिप्पणी तो बाद की बात है। उस समय जो परिस्थितियां थीं, उन्हें जो आंकड़े उपलब्ध थे उनके आधार पर तीन प्रोत्साहन पैकेजों का निर्णय लिया गया।
चिदंबरम ने कहा, ‘इन तीन पैकेजों से साफ साफ फायदे हुए। आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत से उपर थी। पर समस्या राजकोषीय घाटे की हो गयी। यह सीमा से उपर चला गया तथा मुद्रास्फीति करीब करीब बेकाबू हो गयी। बाद में कुछ चीजें साफ दिखने लगी हैं। लेकिन आदमी तो आदमी है, वह घड़ी को पीछे नहीं घुमा सकता।’’ यह पूछे जाने पर कि अब जब कि सब कुछ बीत चुका है, वह क्या सोचते हैं कि गलती कहां हुई तो वित्त मंत्री ने कहा, ‘बात बीच जाने के बाद में यही कहना चाहूंगा कि उस समय भले ही आर्थिक रफ्तार मंद पड़ रही थी पर हमें संभत: राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाए रखना चाहिए था और कहीं ढील देनी भी थी तो वह हल्की और थोड़े समय के लिए होनी चहिए थी।’ चिदंबरम ने कहा कि वह अपने उत्तराधिकारी के लिए एक ऐसी अर्थ व्यवस्था छोड़ेंगे जो ‘बेहतर’, अधिक मजबूत और संतुलित तथा वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्था होगी।’’ उन्होंने कहा इसके साथ ही आपके सामने उथल पुथल भरी दुनिया भी होगी।’’ उन्होंने कहा कि सामान्यत: लेखानुदान एक आयी गयी घटना होती है पर इस बार के अंतरिम बजट पर जो प्रतिक्रिया आयी है उससे लगता है कि हमने जरूर कुछ किया है जिस पर सार्थक और आलोचकों दोनों का ध्यान आकृष्ट हुआ है। हमने बजट में जो बातें की हैं वे सही जगह पहुंची हैं।’’
सब्सिडी पर खर्च को लेकर आलोचना के सवाल पर चिदंबरम ने कहा यह राजनीतिक सिद्धांत का मामला है, इसके बारे में कोई यह भी बहस कर सकता है सब्सिडी क्यों दी जानी चाहिये। ‘‘लेकिन देश के बहुसंख्यक लोग चाहते हैं कि खाद्यान्न के दाम कम हों, वह चाहते हैं कि मिट्टी का तेल सस्ता मिले। कोई भी राजनीतिक पार्टी की सरकार वास्तव में लोगों की ही सरकार होती है और उसे लोगों की मांग पर गौर करना होता है।’’ घरेलू इस्तेमाल के लिये सस्ते रसोई गैस सिलेंडर :एलपीजी: की संख्या बढ़ाये जाने और निर्णय लेने के पीछे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा उठाई मांग के सवाल पर चिदंबरम ने कहा कि मांग संसद के हर हिस्से से उठी है।
जब उन्हें बताया गया कि अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में राहुल गांधी ने यह मांग उठाई, तो जवाब में उन्होंने कहा ‘‘मांग जनता के बीच से आई।’’ उन्होंने कहा कि इससे पहले सरकार ने एआईसीसी के सत्र के बिना ही सस्ते सिलेंडर का कोटा पिछले साल जनवरी में 6 से बढ़ाकर 9 कर दिया था क्योंकि इसके लिये जनता से मांग उठी थी।
चिदंबरम ने कहा ‘‘यह सरकार जनता के प्रतिनिधियों की सरकार है, लोग जो चाहते हैं उसका प्रतिनिधित्व करना होता है, कोई भी सरकार यह नहीं कह सकती कि हम लोगों की मांग पर कान नहीं देंगे।’’ विनिर्माण और पूंजीगत सामान क्षेत्र के लिये उत्पाद शुल्क राहत देने में काफी देरी हुई है, इस सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले साल सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती निवेशकों का विश्वास बहाल करना था। सरकार के समक्ष विश्लेषकों और रेटिंग एजेंसियों को यह विश्वास दिलाने की चुनौती थी कि ‘‘हम अर्थव्यवसथा को फिर से ज्यादा मजबूत और स्थायी आधार उपलब्ध करायेंगे।’’चिदंबरम ने कहा कि पिछले साल कर रियायतें देने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
उन्होंने कहा कि हाल में जो आंकड़े मिले हैं, विशेषतौर से पिछले पांच माह के जो आंकड़े हैं ‘‘स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि विनिर्माण, पूंजी सामान और टिकाउ उपभोक्ता सामानों के क्षेत्र में गिरावट हो रही है। आकड़े जब सामने आ जाते हैं तो हम उनके आधार पर कारवाई करते हैं। मैं आंकड़ों के आधार पर निर्णय करने में यकीन रखता हूं।’’ वित्त मंत्री से जब यह पूछा गया कि आलोचकों का कहना है कि वह :चिदंबरम: अपने उत्तराधिकारी के लिये ‘सरदर्दी’ छोड़कर जा रहे हैं? जवाब में चिदंबरम ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘कौन जानता है, हो सकता है कि मैं ही अपना उत्तराधिकारी हो उं।’’ उन्होंने इस बात को आगे बढ़ाते हुये कहा ‘‘यह सामान्य किस्म की आलोचना है। कोई भी सरकार सुविधानुसार अपनी पिछली सरकार पर दोष लगा सकती है।’’ चिदंबरम ने कहा ‘‘सचाई यह है कि इस सरकार ने पिछले 33 साल के औसत से बेहतर वृद्धि दर हासिल की है। यह भी सचाई है कि इस सरकार ने ऐसी नीतियां तैयार की हैं जो अगले 10 से 20 सालों तक बनीं रहेंगी।’’ वित्त मंत्री ने कहा कि इसमें भी कोई शक नहीं कि इस सरकार ने यह समझा कि दुनिया उथल पुथल के दौर से गुजर रही है और उठापटक वाले इन सालों में अर्थव्यवस्था को स्थिर धरातल पर लाने के लिये काफी कुछ किया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या यह उनका विदाई बजट है, जवाब में उन्होंने कहा किसी भी सरकार का अंतरिम बजट उसका विदाई बजट होता है। ‘‘वैसे तो प्रेस ने हमारे अवसान का गीत ... , वास्तव में 2004 में तत्कालीन भाजपा सरकार के बारे में प्रेस ने कहा था कि यह सरकार नये कपड़े और नये जूते खरीदने जा रही है। नये कपड़े सिलवा पहनकर यह फिर लौटेगी। वर्ष 2009 में मीडिया ने हमारी सरकार को भी विदा कर दिया था.दोनों ही मौकों पर मीडिया गलत साबित हुआ।’’ खर्चे रोककर राजकोषीय घाटे और चालू खाते के घाटे को सीमित रखे जाने के सवाल पर चिदंबरम ने कहा कि 15,90,434 करोड़ रपये के कुल खर्च में से 75,000 करोड़ रपये की खर्च कटौती का असर उतना नहीं होता जितना कि लोग कह रहे हैं।
उन्होंने कहा कि राजस्व वसूली बजट अनुमान के मुकाबले कम रही है। ‘‘यह धन लोगों के पास मौजूद है और लोग इसे खर्च कर रहे हैं। लोग पैसा खर्च करें अथवा सरकार खर्च करे असर दोनों का वही प्रभाव होगा।’’ अंतरिम बजट को मीडिया में लोकलुभावन बताये जाने पर चिदंबरम से उनकी प्रतिक्रिया पूछे जाने पर उन्होंने पलटकर सवाल किया मैं मीडिया की प्रतिक्रिया पर क्यों प्रतिक्रिया व्यक्त करूं। ‘‘यह स्वंत्रत्र देश है, विचार व्यक्त करने के लिये हर कोई आजाद है लेकिन सचाई पवित्र होती है। सचाई यह है कि हम अर्थव्यवस्था को कठिन परिस्थितियों से बाहर लाये हैं और अब यह ज्यादा स्थिर है।’’ ‘‘अब कोई भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग घटाने की बात नहीं करता है। हर कोई इस बात से सहमत है कि हम राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर आ गये हैं। यह सचाई है कि पहली तिमाही से दूसरी और तीसरी से चौथी तिमाही में वृद्धि हुई है। यह असलियत है। जब तक यह वास्तविकता सामने है मुझे आलोचना अथवा किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी का भय नहीं है।’’ (एजेंसी)
First Published: Tuesday, February 18, 2014, 15:41