Last Updated: Tuesday, December 31, 2013, 15:43
नई दिल्ली : वर्ष 2013 वृद्धि दर आर्थिक नरमी और बढ़ती मुद्रास्फीति का साल रहा। देश की अर्थव्यवस्था इसे जल्द से जल्द भूला कर उम्मीद करना चाहेगी कि नया साल नयी सरकार और नया संदेश लेकर आएगा।
सरकार ने वर्ष, 13 में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पुराने आजमाए नुस्खों से लेकर कई प्रयोगात्मक उपाय किए पर वृद्धि दर में पूरे साल गिरावट बरकरार रही।
ऊंची मुद्रास्फीति, खास कर आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतों के दबाव से निराशा और बढ़ी। इस साल रुपए, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक स्तर तक लुढक गया और चालू खाते के घाटे (कैड) का भी नया रिकार्ड बना।
फरवरी में आई वित्त मंत्रालय की आर्थिक समीक्षा में सब ठीक दिखाया गया था और 2013-14 में वृद्धि दर 6.1 से 6.7 प्रतिशत रहने की उम्मीद जताई गई थी। वर्ष 2012-13 में वृद्धि पांच प्रतिशत थी। यह उल्लास जल्दी ही गायब हो गया। वृद्धि बढ़ाने की सरकार की कोशिशें असफल रहीं। अर्थव्यवस्था दलदल में फंस गई। वृद्धि के प्रमुख कारकों में सुधार के कोई संकेत नहीं दिखे।
अप्रैल-सितंबर 2013 के दौरान वृद्धि दर घटकर 4.6 प्रतिशत पर आ गई जो पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में 5.3 प्रतिशत थी। इससे लगता है कि पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि पिछले साल से शायद ही बेहतर हो। वित्त मंत्री पी चिदंबरम और रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने लगातार उद्योग और लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की कि 2013-14 में वृद्धि दर पांच प्रतिशत से अधिक रहेगी या पिछले वित्त वर्ष के दशक भर के न्यूनतम स्तर से नीचे नहीं जाएगी। पर उनकी उत्साहभरी बातों का कोई असर शायद ही दिखा।
दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्वबैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) जैसे संस्थानों ने देश की वृद्धि के बारे में जो अनुमान जारी किए उनमें से किसी का अनुमान पांच प्रतिशत से अधिक वृद्धि का नहीं रहा। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, December 31, 2013, 15:43