Last Updated: Monday, December 30, 2013, 20:58
मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक ने आज कहा कि चालू खाते के घाटे (कैड) में कमी और निर्यात बढ़ने से बाह्य क्षेत्र में स्थिति सुधरी है इसलिये अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा अपने मासिक बॉंड खरीद कार्यक्रम में बदलाव का घरेलू बाजार पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने हालांकि, बैंकों में फंसे कर्ज की बढ़ती रफ्तार को लेकर चेतावनी भी दी है और कहा है कि पिछले छह महीनों के दौरान बैकिंग क्षेत्र के लिये जोखिम बढ़ा है। लेकिन उन्होंने इसके साथ ही यह भी जोड़ा है कि फिलहाल प्रणाली को लेकर कोई जोखिम नहीं है।
रिजर्व बैंक की आज जारी अर्धवाषिर्क वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट को जारी करते हुये राजन ने कहा अर्थव्यवस्था फेडरल रिजर्व के प्रोत्साहन कार्यक्रम में बदलाव से पड़ने वाले असर को सहने के लिये तैयार है। ‘‘प्रोत्साहन कार्यक्रम में बदलाव का असर अर्थव्यवस्था पर सीमित होगा और कम समय ही रहेगा।’’ पिछले कुछ महीनों के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में बाहरी क्षेत्र को लेकर जोखिम कम हुये हैं।
रिपोर्ट में चालू खाते का घाटा, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3 प्रतिशत से भी कम रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। इसमें कहा गया है ‘‘देश की बाहरी लेनदेन स्थिति काबू में दिखती है। विदेशी मुद्रा भंडार भी उपयुक्त मात्रा में है।’’ देश का विदेशी मुद्रा भंडार दिसंबर के तीसरे सप्ताह में 295 अरब डालर पर पहुंच गया।
रिपोर्ट के अनुसार ‘‘बैंकिंग क्षेत्र के स्थिरता संकेतक बताते हैं कि जून 2013 के बाद से बैंकिंग क्षेत्र के लिये जोखिम बढ़ा है।’’ अमेरिका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस महीने घोषणा की है कि वह अपने बॉंड खरीद कार्यक्रम में 10 अरब डालर की कमी लायेगा। फेडरल रिजर्व अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिये हर महीने 85 अरब डालर के बॉंड बाजार से खरीद रहा है, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सस्ती नकदी उपलब्ध हो रही है। फेडरल रिजर्व ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में सुधार आने के संकेत मिलने पर अब अगले महीने से वह 85 के बजाय 75 अरब डालर के ही बॉंड खरीदेगा।
रघुराम राजन ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में उंची मुद्रास्फीति पर चेतावनी के लहजे में कहा है कि यह सस्ते कर्ज की राह में बड़ी रकावट है। ‘‘निर्यात कारोबार में तेजी आने के साथ ही अर्थव्यवस्था को लेकर परिदृश्य में सुधार आया है, लेकिन यह वृद्धि अभी कमजोर है। मुद्रास्फीतिक दबाव पर अंकुश लगाने की चुनौती को देखते हुये मौद्रिक नीति जो कुछ कर सकती है वह विकल्प सीमित रह जाते हैं।’’ थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर नवंबर में 14 माह के शीर्ष स्तर 7.52 प्रतिशत पर पहुंच गई। दूसरी ओर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति भी नवंबर में 9 महीने के उच्चस्तर 11.24 प्रतिशत पर पहुंच गई।
रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘आने वाले दिनों में खाद्य मुद्रास्फीति में कुछ नरमी की उम्मीद है, लेकिन खुदरा मुद्रास्फीति पर लगातार दबाव बने रहना चिंता की बात है।’’ इसमें कहा गया है ‘‘लगातार उंची मुद्रास्फीति’’ और उसकी वजह से ब्याज दरों पर बढ़े दबाव से आर्थिक वृद्धि में गिरावट का जोखिम रहता है। बैंकों की कर्ज में फंसी राशि (एनपीए) लगातार बढ़ने पर रिपोर्ट में चेताया गया है कि ‘‘संपत्तियों की गुणवत्ता पर दबाव लगातार प्रमुख चिंता बनी हुई है।’’ मौजूदा परिस्थितियों के बने रहने पर सकल एनपीए सितंबर 2013 के 4.2 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2014 तक 4.6 प्रतिशत तक पहुंच जायेगा।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल एनपीए 2,29,000 करोड़ रपये तक पहुंच गया। एक साल पहले इसी अवधि में यह 1,67,000 करोड़ रपये पर था। जुलाई.सितंबर तिमाही में बैंकों का पुनर्गठित कर्ज भी अब तक के सबसे उंचे स्तर 4,00,000 करोड़ रपये तक पहुंच गया। यह राशि बैंकों द्वारा दिए गए कुल बकाया कर्ज का 10.2 प्रतिशत है।
बहरहाल रिजर्व बैंक को अगले वित्त वर्ष में कुछ सुधार की उम्मीद है और उसने मार्च 2015 तक सकल एनपीए के 4.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। हालांकि, यह आगाह भी किया है कि यदि आर्थिक स्थिति गड़बड़ाती है तो यह मार्च 2015 तक 7 प्रतिशत पर भी पहुंच सकता है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे और उनका सकल एनपीए 4.9 प्रतिशत जबकि निजी क्षेत्र के नये बैंकों का 2.7 प्रतिशत पर होगा।
रिपोर्ट में इस बात को दोहराया गया है कि कर्ज की आसान पुनर्गठन प्रणाली को रिजर्व बैंक 2015 से बंद कर देगा। इसमें चेतावनी देते हुये कहा गया है कि इसके लिये प्रावधानों में तीव्र वृद्धि किये जाने से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर सबसे ज्यादा असर होगा।
इससे पहले कैड के उंचे अनुपात और अमेरिका के फेडरल रिजर्व प्रोत्साहन कार्यक्रम में बदलाव की आशंका से अगस्त में डालर के मुकाबले रपया एक समय लुढ़ककर अब तक के रिकार्ड निम्न स्तर 68.85 रुपये प्रति डालर तक गिर गया था। इसके बाद रिजर्व बैंक ने लीक से हटकर कई उपाय किये जिससे रपये को संभालने में मदद मिली, इसके बावजूद रपया पिछले साल के मुकाबले अभी भी 14 प्रतिशत नीचे है।
कैड को नियंत्रित करने में सबसे बड़ा योगदान सोने के आयात में कमी के रूप में रहा। प्रवासी भारतीयों और विदेशी लेनदेन में मुद्रा की अदला बदली के जरिये रिजर्व बैंक ने 34 अरब डालर जुटाये इससे रपये को काफी मजबूती मिली। देश के बाहरी मोर्चे पर आने वाली समस्या के बारे में रिजर्व बैंक ने कहा है कि उत्पादकता बढ़ाने और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बेहतर बनाने से ही इसका दीर्घकालिक समाधान हो सकता है।
रिपोर्ट में उंचे राजकोषीय घाटे और घरेलू बचत में गिरावट पर भी चिंता जताई गई है। इसमें कहा गया है कि वित्तीय जवाबदेही कानून पर अमल और सरकारी उधार में कमी से वित्तीय बाजार में विश्वास बढ़ेगा और मुद्रास्फीतिक रझान भी कम होगा। रिपोर्ट में आगामी चुनावों की वजह से बढ़ी अनिश्चितता पर भी चेताया गया है। इसमें कहा गया है कि चुनावों के बाद केन्द्र में किसी प्रकार की अस्थिरता से पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था पर दबाव और बढ़ जायेगा। राजन ने कहा ‘‘अनिश्चितता बढ़ने की एक अतिरिक्त वजह आगामी आम चुनाव हैं। केन्द्र में यदि स्थिर सरकार बनती है तो यह अर्थव्यवस्था के लिये सकारात्मक होगा।’’ (एजेंसी)
First Published: Monday, December 30, 2013, 20:58