Last Updated: Wednesday, October 30, 2013, 23:45

वाशिंगटन : भारत की दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक इन्फोसिस ने आज अमेरिका के साथ अपना वीजा विवाद निपटाने के लिए 3.4 करोड़ डालर का भुगतान करने की सहमति दे दी। हालांकि, कंपनी ने किसी तरह की वीजा धोखाधड़ी से इनकार किया है। इसे अब तक सबसे बड़ा आव्रजन जुर्माना माना जा रहा है। इन्फोसिस कर्मचारियों को अमेरिका कथित तौर पर बी-1 यात्रा वीजा पर भेजती थी न कि एच1-बी परमिट पर। आईटी कर्मचारियों के लिये एच-1बी वीजा बनाया गया है।
मामले के निपटान के लिये कंपनी 3.4 करोड़ डालर जुर्माना देने पर सहमत हुई। आउटसोर्सिंग उद्योग में यह अबतक का सबसे बड़ा जुर्माना है। हालांकि बेंगलूर की कंपनी ने वीजा धोखाधड़ी तथा उसके दुरूपयोग के आरोप से इनकार किया है।
इन्फोसिस ने कहा, कंपनी ने अमेरिकी विदेश विभाग, आव्रजन तथा सीमा शुल्क प्रवर्तन तथा गृह विभाग के साथ 1-9 कागजी कार्य से जुड़ी गलतियों तथा वीजा मामलों का समाधान कर लिया है। फार्म 1-9 का उपयोग अमेरिका में नियुक्त किये गये कर्मचारियों की पहचान के सत्यापन के लिये किया जाता है।
इन्फोसिस ने बयान में कहा, कंपनी के खिलाफ कोई आपराधिक आरोप या अदालती आदेश नहीं है। साथ ही, मामलों के निपटान को लेकर कंपनी पर संघीय ठेके या अमेरिकी वीजा कार्यक्रम को लेकर कोई सीमा नहीं लगायी गयी है। कंपनी के अनुसार, मामलों के निपटान के लिये इन्फोसिस 3.4 करोड़ डालर देने पर सहमत हुई है। इसके लिये कंपनी पहले से ही 3.5 करोड़ डालर राशि अलग रखी थी जिसमें अटार्नी की फीस भी शामिल है। इन्फोसिस ने कहा कि मामलों के निपटान समझौतों में अमेरिकी सरकार ने माना कि कंपनी ने मौजूदा वीजा नियमों का अनुपालन कर आव्रजन कानून के अनुपालन में प्रतिबद्धता दिखायी है।
इस बीच इन्फोसिस के अमेरिका के एक पूर्व कर्मचारी को इस 3.4 करोड़ डालर की राशि में से 50 लाख डालर मिल सकते हैं। इस कर्मचारी ने ही कंपनी के खिलाफ व्हीसलब्लोअर लासुइट दायर किया था। जे पामर ने फरवरी, 2011 में अल्बामा में ला सुइट दायर किया था। उन्होंने कहा था कि उसके द्वारा बड़े पैमाने पर वीजा धोखाधड़ी की जानकारी देने के बाद कंपनी ने उसे दंडित किया और नजरअंदाज किया। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, October 30, 2013, 23:44