राडिया टेप औद्योगिक प्रतिद्वन्द्विता के कारण लीक हुए: टाटा

राडिया टेप औद्योगिक प्रतिद्वन्द्विता के कारण लीक हुए: टाटा

राडिया टेप औद्योगिक प्रतिद्वन्द्विता के कारण लीक हुए: टाटा नई दिल्ली : टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि प्रमुख नेताओं, नौकरशाहों और कारोबारियों के साथ नीरा राडिया की टैप की गयी टेलीफोन की बातचीत औद्योगिक प्रतिद्वन्द्विता के कारण ही मीडिया को लीक की गयी थी।

न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष रतन टाटा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने यह सनसनीखेज खुलासा करते हुये कहा कि टाटा टेलीकम्युनिकेशंस को भी टेलीफोन की बातचीत सुनने के लिये हर साल सरकारी प्राधिकारियों से 10 से 15 हजार अनुरोध मिलते हैं। उन्होंने टैप की गयी बातचीत लीक करने वालों का पता नहीं लगाने पर केन्द्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाया।

साल्वे ने कहा, ‘‘टाटा टेलीकाम को ही हर साल टेलीफोन सुनने के लिये 10 से 15 हजार अनुरोध मिलते हैं। सभी टेलीकाम कंपनियों को हर साल इस तरह के 60 से 70 हजार अनुरोध मिलते ही होंगे।’’

उन्होंने कहा कि टेलीफोन टैप करने का यह आदेश दूसरी वजहों से दिया गया था। यदि कापरेरेट जगत में लड़ाई नहीं चल रही होती तो यह सार्वजनिक दायर में नहीं आता। उन्होंने कहा कि उन्हें इसमें कोई संदेह नहीं है कि कापरेरेट प्रतिद्वन्द्विता के कारण ही सबसे पहले लीक हुआ था। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले में आय कर विभाग की पहल पर टेलीफोन टैप किये गये थे और उसी समय कुछ सेवा प्रदाता ने लाइसेंस से वंचित होने के जोखिम पर यह किया था।

साल्वे ने कहा कि टैप की गयी बातचीत के विश्लेषण करके काम की सूचना का पता लगाने और निजी स्वरूप के अंशों को नष्ट करने की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। उन्होंने जांच एजेन्सी पर भी सवाल उठाया और कहा कि उसने मीडिया का इस्तेमाल किया जो बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम की यह (राडिया टैप) क्यों और किसे शर्मसार करने के लिये लीक किये गये।’’ साल्वे ने कहा कि सरकार को टैप की गयी बातचीत में से काम के अंश अपने पास रखने चाहिए और शेष अंश नष्ट कर देने चाहिए। टैप की गयी समूची बातचीत रखने की इजाजत नहीं है। लोगों के निजता के अधिकार की रक्षा करनी होगी।

उन्होंने कहा कि टैपिंग की समीक्षा करने वाली समिति पर काम का दबाव है और उसके लिये सुने गये सभी टेलीफोनों की समूची प्रक्रिया पर गौर करना संबंध नहीं है। साल्वे ने कहा, ‘‘इस तरह के अनेक मामले सामने नहीं आये हैं। कौन है जो इन सभी मामलों को देख रहा है। क्या हम सरकार के लिये अनुपायोगी बातचीत को नष्ट नहीं करके किसी और वक्त पर इसे ‘डायनामाइट’ (सूचना की खान) के रूप में इस्तेमाल की अनुमति देने जा रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि इस लीक की केन्द्र द्वारा करायी गयी जांच पूरी तरह सतही है और इस मामले में उसके हलफनामे में भी एकरूपता नहीं है। साल्वे ने इस बातचीत को सार्वजनिक नहीं करने की दलील देते हुये कहा, ‘‘सरकार ने अपने हाथ खड़े कर लिये हैं। मीडिया और याचिकाकर्ता से परे नहीं हैं। आरटीआई है और सरकार को यह फैसला करना है कि टैप की गयी बातचीत को सार्वजनिक करना है या नहीं। हमारे पास तो अब पारदर्शिता के लिये आरटीआई की व्यवस्था है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सार्वजनिक मसलो की जांच का मीडिया को अधिकार है और कानून को एक सीमा तक उन्हें भी संरक्षण देना होगा। लेकिन महज संदेह के आधार पर सचूना का प्रकाशन नहीं किया जा सकता। मीडिया को इसे प्रकाशित करने से पहले गपशप की सत्यता का पता लगाने के लिये और आगे की जांच करलेनी चाहिए’’ साल्वे ने कहा कि अदालतों में पेश दस्तावेजों को सार्वजनिक नहीं कहा जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक पत्रिका के इस दावे को चुनौती दे रहा हूं कि यदि कोई दस्तावेज शीर्ष अदालत में पेश कर दिया गया है तो वह सार्वजनिक है और उसे प्रकाशित करने का अधिकार है। (एजेंसी)

First Published: Friday, October 25, 2013, 21:22

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