Last Updated: Monday, December 30, 2013, 13:51

मुंबई: वाह्य क्षेत्र के संबंध में आशावादी तस्वीर पेश करते हुए रिजर्व बैंक ने कहा कि देश अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा बांड खरीद कार्यक्रम में कटौती शुरू करने की प्रक्रिया से पैदा परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार है और अपनी आठवीं वित्तीय स्थिरता रपट में कहा कि वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान चालू खाते का घाटा (कैड) तीन प्रतिशत से नीचे रहेगा। आज यहां जारी रपट में कहा गया वाह्य क्षेत्र के जोखिम में उल्लेखनीय कमी आई है और अर्थव्यवस्था पर फेडरल रिजर्व द्वारा बांड खरीद में कटौती से सीमित और अस्थाई असर होगा।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व मासिक बांड खरीद कार्यक्रम में कटौती में देरी (कटौती एक जनवरी से शुरू होगी) से भारत को अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने और चालू खाते के बढ़ते घाटे को सीमित करने का समय मिल गया। फेडरल रिजर्व अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नरमी से निकालने के लिए सस्ते ऋण की नीति की तहत हर माह 85 अरब डालर के सरकारी या सरकारी गारंटी वाले बांड खरीदता आ रहा है। दिसंबर के तीसरे सप्ताह में उसने इसे घटा कर 75 अरब डालर रखने का निर्णय लिया है।
आरबीआई को चालू वित्त वर्ष में कैड तीन प्रतिशत से कम रहने की उम्मीद है व्यापार घाटा बढ़ने और सोने का आयात अधिक होने के कारण पिछले साल कैड 4.8 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर था।
रुपए डालर के मुकाबले अगस्त में गिर कर 68.85 तक चला गया था। इसकी प्रमुख वजह अमेरिका के बांड खरीद कार्यक्रम को लेकर अनिश्चितता वह कैड का उंचा होना था। रुपए की विनिमय दर तब से सुधरी है और डालर अब 62 के आस पास है पर अब भी यह यह पिछले साल के मुकाबले 14 प्रतिशत नीचे है।
सरकार और अन्य संबद्ध एजेंसियों ने कैड का घटाने के लिए कई कदम उठाए। सोने के आयात पर अंकुश लगाया गया, डालर का प्रवाह बढाने के लिए रिजर्व बैंक ने करेंसी अदला-बदली की विशेष सुविधाएं शुरू की और सट्टेबाजी कम करने के लिए नीतिगत ब्याज दरों को बढाया गया। इन सबसे कैड दूसरी तिमाही में घटकर 1.2 प्रतिशत पर आ गया और विदेशी मुद्रा भंडार मध्य दिसंबर तक लगातार छह सप्ताह बढते हुए 295 अरब डालर से उपर पहुंच गया।
डालर की अदला बदली की दो सुविधाओं के जरिए रिजर्व बैंक 34 अरब डालर का कोष आकर्षित करने में कामयाब रहा तथा सोने के आयात में भारी गिरावट का भी कैड पर अनुकूल असर पड़ा। रुपए के संबंध में आरबीआई ने कहा है कि विदेशी बाजारों के सौदों से भी रुपये की दर प्रभावित हुई है क्योंकि पिछले कुछ साल से इन बाजारों में उभरते बाजारों की करेंसी की खरीद फरोख्त बढी है जिनमें भारत का रुपया भी शामिल है।
रिजर्व बैंक ने कहा है कि देश की वाह्य क्षेत्र की दीर्घकालिक मजबूती उत्पादकता और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में निहित है। आरबीआई ने कहा कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रास्फीति की दरों में कोई बड़ा फर्क जोखिम पूर्ण हो सकता है और इससे विनिमय दर में बड़ा उतार चढाव हो सकता है।
हालांकि आरबीआई ने कहा कि सितंबर से उठाए गए कदमों से विदेशी मुद्रा बाजार का उतार-चढ़ाव कम हुआ। रपट में कहा गया कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना अनिवार्य है। आरबीआई ने कहा कि उभरती भू-राजनैतिक स्थिति और शेल गैस जैसे वैकल्पिक उर्जा स्रोतों की उपलब्धता का भी उर्जा आयात बिल पर सकारात्मक असर होगा। (एजेंसी)
First Published: Monday, December 30, 2013, 13:51