Last Updated: Tuesday, April 22, 2014, 23:12
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कालेधन से संबंधित सभी मामलों की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करने सहित शीर्ष अदालत के तीन साल पुराने निर्देशों पर अमल करने में विफल रहने के कारण मंगलवार को केन्द्र सरकार को आड़े हाथ लिया। न्यायालय ने लिस्टेनस्टिन बैंक में लोगों के जमा धन के बारे में जर्मनी से मिली सूचना का खुलासा करने का भी निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति एच एल दत्तू, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सालिसीटर जनरल मोहन पराशरन की दलीलों से असहमति व्यक्त करते हुये कहा, ‘‘यह पूरी तरह से हमारे निर्देशों की अवमानना है।’’ सालिसीटर जनरल का कहना था कि चार जुलाई, 2011 के फैसले में दिये गये सभी निर्देश परस्पर संबंधित थे और जर्मनी से मिले नामों का खुलासा विशेष जांच दल की जांच के बाद किया जाना था।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमारी राय में फैसले को एक साथ नहीं बल्कि अलग अलग पढ़ना होगा। हम सालिसीटर जनरल के स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं।’’ पराशरन का कहना था कि चूंकि कई प्राधिकारी जांच कर रहे हैं, इसलिए केन्द्र को उन्हीं व्यक्तियों के नामों का खुलासा करना था जिन्हें विशेष जांच दल की जांच के बाद कारण बताओ नोटिस दिया जा चुका है।
सालिसीटर जनरल के इस तर्क से असहमति व्यक्त करते हुये न्यायालय ने कहा, ‘‘इसका विशेष जांच से कुछ लेना देना नहीं है। आज हमें स्पष्ट है कि आपको जर्मनी से खाता धारकों के बारे में मिले दस्तावेज और सूचना मुहैया करानी है। न्यायाधीशों ने चार जुलाई, 2011 के निर्देशों का जिक्र करते हुये कहा, ‘‘दूसरी बात, विशेष जांच दल को इसकी जांच अपने हाथ में लेनी है। तीसरी बात, आपको उन व्यक्तियों के नाम बताने हैं जिन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है।’’
इन निर्देशों में कहा गया था कि सरकार को ‘तत्काल’ उसके आदेशों का पालन करना होगा। न्यायालय ने इस बात पर अचरज व्यक्त किया कि उसके निर्देशों के तीन साल बाद उसे आज सूचित किया जा रहा है कि 13 सदस्यीय विशेष जांच दल का अध्यक्ष नियुक्त किये गये पूर्व न्यायाधीश बी पी जीवन रेड्डी ने 15 अगस्त, 2011 को इस दल का नेतृत्व करने में असमर्थता व्यक्त करते हुये एक पत्र लिखा था। उन्होंने 18 अप्रैल, 2014 को राजस्व विभाग के संयुक्त सचिव को लिखे एक अन्य पत्र में इसे दोहराया था।
न्यायाधीशों ने न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी के दोनों पत्रों का जिक्र करते हुये कहा, ‘‘अचानक ही कैसे यह पत्र सामने आया। हमें आश्चर्य है कि 15 अगस्त, 2011 का पत्र पहले कभी भी सामने नहीं आया।’’ न्यायालय ने केन्द्र और राम जेठमलानी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं से कहा कि इस पर चर्चा करें और विशेष जांच दल का नेतृत्व करने के लिये शीर्ष अदालत के किसी अन्य पूर्व न्यायाधीश का नाम बतायें। साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसा न्यायाधीश पूर्व न्यायाधीश एम बी शाह से वरिष्ठ होना चाहिए जो विशेष जांच दल के उपाध्यक्ष हैं।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘विशेष जांच दल गठित करने से पहले न्यायालय न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी के संपर्क में था। अब आप दोनों परामर्श करके किसी एक नाम पर सहमत हो सकते हैं ताकि इससे कोई समस्या उत्पन्न नहीं हो और न्यायाधीश के नाम का उल्लेख करने से पहले आपको उनसे भी बात करनी होगी। हम किसी न्यायाधीश के नाम का सुझाव नहीं देना चाहते।’’
न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 29 अप्रैल के लिये स्थगित करते हुये सालिसीटर जनरल से कहा कि राजस्व सचिव से सही निर्देश प्राप्त करके जवाब दिया जाये कि ‘‘निर्देशों पर अमल करने से उन्हें (केन्द्र को) किसने रोका था।’’ न्यायालय ने जब सालिसीटर जनरल से कहा कि वह जेठमलानी और अन्य की उस अर्जी पर विचार कर रहा है जिसमें केन्द्र पर जर्मनी के बैंक के खाता धारकों के नामों का खुलासा करने के निर्देश का पालन नहीं करने का आरोप लगाया गया है तो उन्होंने कहा कि विशेष जांच दल के गठन के बगैर ऐसा नहीं किया जा सकता है।
न्यायाधीश उनके इस तर्क से असहमत थे। राम जेठमलानी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल दीवान ने कहा, ‘‘निर्देश यह था कि केन्द्र सरकार जर्मनी से मिली सूचना, दस्तावेज और सामग्री तत्काल देगी। उन्होंने कहा कि यदि इस पर कोई स्थगनादेश नहीं था तो फिर आदेश को लागू करना चाहिए। चार जुलाई, 2011 के निर्देशों पर कोई रोक नहीं थी।’’ दीवान के तर्क से सहमति व्यक्त करते हुये न्यायाधीशोंने कहा, ‘‘न्यायालय ने आपको जर्मनी से मिले नाम और सामग्री की जानकारी याचिकाकर्ता को देने का निर्देश दिया गया था और विशेष जांच दल अपने हाथ में जांच लेकर आगे काम करेगा।’’ (एजेंसी)
First Published: Tuesday, April 22, 2014, 23:12