‘जब बिड़ला के कारोबार विस्तार में आड़े आया बटर चिकन’

‘जब बिड़ला के कारोबार विस्तार में आड़े आया बटर चिकन’

नई दिल्ली : उद्योगों के अंतरराष्ट्रीय विस्तार में कई बार छोटी छोटी चीजें भी खतरा बन जाती हैं और उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला के लिए यह खतरा उनकी कंपनी के दफ्तर की कैंटीन में `बटर चिकन` पकाने के रूप में सामने आया।

उल्लेखनीय है कि आदित्य बिड़ला समूह के चेयरमैन कुमार मंगलम मारवाड़ी समुदाय से हैं जहां शाकाहार जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा और विश्वास है। यहां तक कि कंपनी के किसी भी कार्यालय या कारखाने की कैंटीन में मांस नहीं पकाया या परोसा जाता, यहां तक कि कंपनी के कार्य्रकमों में शराब भी नहीं परोसी जाती। कंपनी द्वारा ऑस्ट्रेलिया में एक कारोबार के अधिग्रहण तक यह सब ठीक था। ऑस्ट्रेलिया जहां अधिकांश कर्मचारियों के लिए बीयर तथा भूना मांस (बार्बेक्यू) दैनिक जीवन का हिस्सा है।

बिड़ला के अनुसार, `अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना कठिन, जोखिम भरा काम है। मुझे याद है कि जब मैंने किसी बिड़ला कैंटीन में बटर चिकन परोसा जाते देखा तो पाया कि कई बार सबसे बड़ी चुनौती वह बन जाती है जिससे आपको ज्यादा उम्मीद नहीं होती। उल्लेखनीय है कि 46 वर्षीय बिड़ला का आदित्य बिड़ला ग्रुप 36 देशों में परिचालन करता है और उसकी कमाई का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा विदेशी परिचालन से आता है। उन्होंने कहा, `अगर हम दुनिया पर अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं तो हमें भी इसके लिए तैयार रहना होगा कि दुनिया हम पर भी कोई निशान छोड़ सकती है।

बिड़ला ने एक पुस्तक `री-इमेजिंग इंडिया : अनलाकिंग द पोटेंशियल ऑफ एशियाज नेक्स्ट सुपरपावर` में एक आलेख में इस घटना का जिक्र किया है। वैश्विक परामर्श फर्म मैकिंसे ने इस किताब में देश के प्रमुख उद्योगपतियों के लेखों का संकलन किया है। बिड़ला ने कहा कि महत्वाकांक्षी तथा अच्छी भारतीय कंपनियों के लिए दुनिया में अवसर हैं लेकिन उन्हें याद रखना होगा कि दुनिया उन्हें उतना ही बदलेगी जितना वे दुनिया को बदलने की उम्मीद करते हैं।

आदित्य बिड़ला ग्रुप ने 2003 में ऑस्ट्रेलिया में 1.25 करोड़ डालर में एक छोटी से तांबे की खान खरीदी थी लेकिन इसमें कंपनी के लिये एक अलग तरह की चुनौती खड़ी हो गई। बिड़ला ने कहा, `हमारे नये कर्मचारी इस बात को लेकर चिंतित थे कि भारतीय स्वामित्व के तहत उनका जीवन कैसे बदल जाएगा। क्या उन्हें कंपनी कार्य्रकमों में बीयर तथा भुना मांस त्यागना होगा। हमने उन्हें आश्वस्त किया- बिलकुल नहीं।`

भारतीय कंपनियां जहां अपनी पीढ़ियों पुरानी परंपराएं छोड़ रही हैं वहीं विदेशी कंपनियां भी इसी तरह के कदम उठा रही हैं जो भारत में विस्तार करना चाहती हैं। क्योंकि अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते एक बड़ी जनसंख्या मांस नहीं खाती। प्रमुख अमेरिकी कंपनी मैक्डोनाल्डस को भी भारत में अपने मेन्यू का स्थानीयकरण करना पड़ा।

हालांकि कई बार ऐसा करना मुश्किल हो जाता है। पिछले साल मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने मांसाहारी खाद्य खुदरा श्रृंखला चलाने की योजना को रद्द कर दिया। अंबानी खुद शाकाहारी हैं और उनकी कंपनी के कई शेयरधारक भी जिनमें से अधिकतर गुजराती या जैन समुदाय से हैं। ये लोग मांसाहार कारोबार को धार्मिक भावनाओं पर चोट के रूप में देख रहे थे। (एजेंसी)

First Published: Sunday, January 19, 2014, 19:33

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