एक मिनट में 60 मौतें

एक मिनट में 60 मौतें

एक मिनट में 60 मौतेंज़ी मीडिया/क्राइम रिपोर्टर

एक ऐसा हथियार निर्माता जिसने एक रायफल का डिजाइन तो तैयार किया था सेना के लिए लेकिन आज दुनियाभर में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल आतंकी वारदातों में हो रहा है। रूसी सेना के टैंक कमांडर से हथियार निर्माता बनने वाले इस शख्स ने 94 साल की उम्र में जिंदगी का साथ जरूर छोड़ दिया लेकिन अपनी मौत के पहले ही वो दुनिया में छोड़ गये करीब 15 करोड़ ऐसे घातक हथियार जो आज कई देशों की सेना की जरूरत तो है ही दुनिया भर के दहशतगर्दों का भी एक पसंदीदा खिलौना बन गया है।

युद्ध में गंभीर रूप से जख्मी होने के बाद अपने खाली दिनों में क्लाश्निकोव ने अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े ही सेना की जरूरत के हिसाब से एक ऐसे रायफल का डिजायन तैयार कर लिया था जो देखने और ढोने में तो रायफल के समान ही हो लेकिन उसमें खूबियां मशीन गन की हों ।साथ ही वो कम दूरी में भी प्रभावी तरीके से मार सकता हो और जब रायफल का डिजाइन तैयार हुआ तो उसकी खूबियों ने क्लाश्निकोव को भी हैरान कर दिया। रूसी सेना के साथ ही दुनिया भर में इसके डिजायन को हाथों हाथ लिया गया लेकिन जिंदगी के आखिरी दिनों में वो इस बात को लेकर भी परेशान रहे कि उनकी बनाई रायफल का इस्तेमाल दहशत फैलाने में ज्यादा हो रहा है। उनकी डिजायन की गई रायफल एके 47 के दहशतगर्दी में इस्तेमाल के बारे में एक बार उन्होंने खुद कहा था कि देश के दुश्मनों के काम आने वाली चीज के दहशतगर्दी का औजार बन जाने की संभावना के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।

अस्पताल में ही उन्होंने ऐसी खूबियों वाले पहले रायफल का रफ मॉडल तैयार किया फिर 1944 में पहली कारबाइन राइफल बनाई और 1947 में जाकर ऑटोमैटिक राइफल एके-47का डिज़ाइन तैयार किया। हथियार निर्माण के क्षेत्र में इस रायफल को बीसवी सदी की बड़ी खोज में एक माना जाता है। इसी वजह से क्लाशिनकोव का नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज हुआ। एक अनुमान के मुताबिक़ दुनिया में इस वक्त 15 करोड़ ज्यादा एके-47 रायफल का इस्तेमाल किया जा रहा है। मिखाइल क्लाश्निकोव ने अपनी जिंदगी में पहले सोवियत संघ और फिर बाद में रूसी सेना के लिए करीब डेढ़ सौ हथियारों का डिजायन तैयार किया या एप्रूव किया। अपने आखिरी वक्त में भी वो एक मुख्य आर्टलरी फैक्ट्री के चीफ़ डिज़ायनर थे लेकिन एके-47 ने हथियार निर्माण के क्षेत्र में उन्हें जो ख्याति दिलाई उसका मुकाबला कोई भी दूसरा हथियार कभी नहीं कर सका।

हालांकि उन्होंने 1947 के बाद भी इस रायफल के डिजायन में जरूरत के मुताबिक जरूरी सुधार किये लेकिन इस एक रायफल ने ही क्लाश्निकोव को रूस में नेशनल हीरो का दर्जा दिला दिया ।मिखाइल क्लाश्निकोव को इस बात का अहसास भी नहीं था कि उनकी बनाई रायफल एक दिन दुनियाभर के लड़ाकों की पहली पसंद बन जायेगी। ये एक ऐसी ऑटोमैटिक रायफल है जिसे सेना तो पसंद करती ही है दहशतगर्दी फैलान के लिए भी ये आज अहम हथियार बन गई है। एक ऐसी रायफल जो बेहद घातक है और टार्गेट पर सटीक मार करती है। एक ऐसी रायफल जो सिर्फ एक मिनट में सौ निशानों को भेदने की क्षमता रखती है।

एक ऐसी रायफल जो जिसे दुनिया भर की कई देशों की सेनाओं के साथ ही आतंकी गुट भी पसंद करते हैं। रूस की सेना के इस्तेमाल के लिए मिखाइल क्लाश्निकोव ने इस रायफल को तैयार किया था लेकिन इसकी खूबियों की वजह से आज दुनिया के तमाम लड़ाके इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं। एके 47 का इस्तेमाल सबसे पहले शीत युद्ध के दौरान शुरू हुआ। इस दौरान पूरा विश्व लगभग दो विचारधारा में बंटा हुआ था ।दोनों विचारधारायें अपने समर्थित आतंकी गुटों को हथियार मुहैया कराती थी और वर्चस्व की इसी लड़ाई की वजह से धीरे धीरे ये घातक एसॉल्ट रायफल दहशतगर्दों के हाथ भी लग गई। इस्तेमाल करने में बेहद आसान होने और अलग अलग स्पीड अलग अलग मोड में फायर करने की अपनी खास खूबी की वजह से धीरे धीरे ये रायफल आतंकियों का पसंदीदा हथियार बनती चली गयी ।एके 47 के निर्माता मिखाइल क्लाश्निकोव की कई बार इस बात के लिए आलोचना भी की गई कि उन्होंने दुनिया भर के आतंकियों को दहशत फैलाने का अचूक हथियार थमा दिया है लेकिन उन्होंने कभी इस आलोचना की परवाह नहीं की।

मिखाइल क्लाश्निकोव ने इस रायफल को इसलिए बनाया था ताकि रूसी सेना जर्मन सेना को युद्ध में सटीक जवाब दे सके। लेकिन सोवियत संघ की तत्कालीन व्यवस्था की वजह से वे इसका पेटेंट नहीं करवा सके और धीरे धीरे इसका डिजायन दुनिया के करीब सौ देशों तक पहुंच गया और इसी तरीके से वो आतंकी गुटों के लिए भी आसानी से उपलब्ध होता गया। देश की रक्षा करने के इरादे से सेना के लिए बनाया गया हथियार धीरे धीरे दहशतगर्दों के हाथ का खिलौना बन गया।एक आंकड़े के मुताबिक दुनिया भर में आतंकी घटनाओं में ही एके 47 ने दस हजार से ज्यादा लोगों की जान ली है और दहशतगर्द आज भी इसके जरिये दुनिया भर में अपना कहर बरपाने में लगे हुए हैं। साफ है कि मिखाइल क्लाश्निकोव ने एक ऐसा रायफल बनाने का सपना जरूर देखा था जिसकी बदौलत सोवियत संघ की सेना अपने दुश्मनों के दांत आसानी से खट्टे कर सके। लेकिन उन्होंने कभी भी ये नहीं सोचा कि उनके नाम से पहचाने जाने वाली ये रायफल किसी दिन आतंकियों का पसंदीदा हथियार बन जाएगी।

First Published: Tuesday, December 24, 2013, 21:15

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