फोन टैपिंग और घातक साजिश

फोन टैपिंग और घातक साजिश

फोन टैपिंग और घातक साजिश ज़ी मीडिया/क्राइम रिपोर्टर

फोन टैपिंग का मायाजाल, जिस पर गड़ गई हैं खुफिया एजेंसियों की निगाहें। शक है कि टैपिंग के आड़ में तैयार हो रही है देश के दुश्मनों की बड़ी साज़िश।

कुछ आला नेताओं के फोन टैप किए जाने की खबर ने देश में सियासी गर्मी तो पैदा की ही है। खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की पेशानी पर भी बल डाल दिया है। सवाल उठ रहा है कि फोन टैपिंग महज पॉलिटिकल जासूसी है या फिर इसके पीछे चल रही है कोई बड़ी साज़िश।

इस मामले के खुलासे के बाद अचानक एक्टिव हो गई हैं देश की खुफिया एजेंसियां। पकड़े गये लोग तो जांच के दायरे में हैं ही छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड के कुछ आला अफसर और राजनेता भी हैं। खुफिया और जांच एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती टैपिंग मामले से जुड़े लोगों के नेटवर्क को खंगालने और उनकी असली साज़िश का पता लगाने की है।

मामले के तार छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हुए हमले से जोड़े जा रहे हैं। इसके तार पटना धमाके से जोड़कर खंगाले जा रहे हैं। साफ है कि खुफिया एजेंसियों के राडार पर हैं टैपिंग करने वालों का नेटवर्क और जांच के दायरे में टैपिंग से जुड़े पुलिसवाले। विपक्षी पार्टियां कई बार सरकार के इशारे पर फोन टैपिंग के आरोप लगाती हैं। इन मामलों के सच पाये जाने पर कार्रवाई भी होती है लेकिन पहली बार देश की खुफिया एजेंसी इस मामले को लेकर एक्टिव हुई है। क्योंकि अब इस बात के संकेत मिले हैं कि इस नेटवर्क के पीछे देश के दुश्मनों की भी हो सकती है साज़िश।

देश के दुश्मनों की दो अलग अलग साजिशें हुई। एक साजिश को नक्सलियों ने अंजाम दिया तो दूसरी साजिश को इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े दहशतगर्दों ने सिरे चढ़ाया। लेकिन इन दोनों साजिशों में जिस एक कॉमन बात पर जांच एजेंसियों की निगाह गई है वो है नेताओं के एक एक मूवमेंट की जानकारी लीक होने की। कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले की जांच में पता चला था कि नक्सलियों को काफिले के हर मूवमेंट के बारे में पता था। यहां तक कि आखिरी वक्त में बदले गये काफिले के रास्ते की भी जानकारी नक्सलियों तक पहुंच गई थी। इसी तरह पटना में भी नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम की पूरी जानकारी दशतगर्दों के पास पहले से ही थी। दिल्ली में फोन टैपिंग मामले के खुलासे के बाद अंदेशा जताया जा रहा है कि इन दोनों ही वारदातों की सटीक प्लानिंग के पीछे टैपिंग नेटवर्क का हाथ हो सकता है।

फोन टैपिंग कर पॉलिटिकल जासूसी करने के आरोप पहले भी लगाये जाते रहे हैं। दिल्ली समेत कई राज्यों में इस तरह के आरोप लगते रहे हैं लेकिन पहली बार खुफिया और जांच एजेंसियां इस पूरे नेटवर्क को दहशतगर्दों और नक्सलियों के नेक्सस से जोड़कर देख रही हैं। जानकार के मुताबिक अलग अलग दलों के आला नेताओं के साथ ही हाईप्रोफाइल पदों पर बैठे लोगों की बातचीत की जानकारी अगर किसी तरह देश के दुश्मनों तक पहुंच गई तो उसका काफी घातक परिणाम हो सकता है।

पता चला है कि खुफिया और जांच एजेंसियां इस मामले में पुलिस विभाग को भी खंगालने में लगी हुई है। दिल्ली के फोन टैपिंग मामले में जिन दस लोगों की गिरफ्तारी हुई है। उनमें तीन पुलिस वाले और एक होमगार्ड का जवान भी शामिल हैं। इसके साथ ही दिल्ली के चार एसीपी के ऑफिस को भी इस मामले में इनवॉल्व्ड बताया जा रहा है। जांच में पता चला है कि राजधानी के सात सर्विस प्रोवाइडर्स से 50 से ज्यादा लोगों की सीडीआर मंगाई गई।

साफ है कि फोन टैपिंग नेटवर्क ने जहां बड़े पैमाने पर अपना जाल फैला रखा था वहीं पुलिस महकमें में भी कारगर सेंध लगाई थी। फोन टैपिंग मामले से साफ हो गया है कि पुलिस महकमे में भी लग चुकी है सेंध। खुफिया एजेंसियां अब इस पूरे मामले की जांच आतंकवादियों और नक्सली संगठनों के नेक्सस से जोड़कर कर रही हैं क्योंकि ऐसा कोई भी गठजोड़ देश के लिए हो सकता है काफी घातक.पटना धमाके की जांच के सिलसिले में जांच एजेंसियों एक पूर्व डीएसपी के घरवालों के भी शामिल होने की बात का खुलासा किया है। पटना धमाके के बाद मौके से गिरफ्तार इम्तियाज अंसारी ने जांच एजेंसियों को बताया है कि धमाके के मुख्य आरोपी तहसीन उर्फ मोनू और हैदर ने रांची में रहने वाले एक पूर्व डीएसपी के घर को भी अपना ठिकाना बनाया था।

इसके साथ ही पुलिस ने गुरुवार को ही गया के बाराचट्टी में सीआरपीएफ के एक असिस्टेंट कमांडेंट को नक्सली संगठनों को खुफिया जानकारी लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इन दोनों ही खुलासों से इस बात का संकेत मिलता है कि देश के दुश्मनों ने सुरक्षाबलों तक अपनी पहुंच बना ली है। ऐसे में अगर पुलिस वालों की मदद से दहशतगर्दों ओर नक्सलियों के नेक्सस तक देश के अहम और हाई प्रोफाइल लोगों की जानकारी फोन टैपिंग की वजह से पहुंच गई तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके कितने घातक परिणाम हो सकते हैं।

फोन टैपिंग से जुड़ा कोई मामला जब भी सामने आता है तो उसे लेकर खूब बवाल होता है.लेकिन फोन टैपिंग पर लगाम फिर भी नहीं लगती.सवाल ये है कि क्यों कम नहीं होते फोन टैपिंग से जुड़े लोगों के हौसले? और क्या है सिस्टम के लूपहोल्सफोन टैपिंग के इस खेल में अगर आतंकियों और नक्सलियों का नेक्सस भी शुमार हो गया तो देश के लिए कितना बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। इसका अंदाजा लगाना खास मुश्किल नहीं है। तमाम हाईप्रोफाइल और अहम पदों पर बैठे लोगों की निजी जानकारी अगर दहशतगर्दों तक पहुंची तो उसका इस्तेमाल देश विरोधी गतिविधियों में होना तय है। सुरक्षा एजेंसियां भी इस खतरे से अनजान नहीं हैं लेकिन टेलीफोन टैपिंग का ये खतरा देश में बार-बार सिर उठाता है। थोड़ा शोर मचता है आरोपों-प्रत्यारोंपों का दौर चलता है और कुछ दिनों बाद मामला शांत हो जाता है। एक-दो गिरफ्तारियां होती हैं और मामूली सजा और जुर्माने के बाद वो भी कानून के शिकंजे से छूट जाते हैं।

टेलीग्राफ एक्ट की धारा 26 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति बिना इज़ाजत के किसी का फोन टैप करता है या इज़ाजत लेने के बाद टैप की हुई बात किसी अनाधिकृत व्यक्ति के साथ शेयर करता है तो उसे अधिकतम 3 साल की कैद या 1 लाख तक का जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। देश की सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले फोन टैपिंग जैसे संगीन अपराध के लिए सिर्फ 3 साल की सजा और जुर्माना? ऐसे में अहम सवाल ये है कि जब कड़ी सजा का डर ही नहीं होगा तो फोन टैपिंग जैसे संगीन गुनाह पर लगाम लगेगी भी तो कैसे? हालांकि फोन टैपिंग को लेकर मामूली सजा के प्रावधान का अहसास सरकार और प्रशासन को भी है। यही वजह है कि हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम यानी डीओटी ने टेलीग्राफ एक्ट में बदलाव करने की सिफारिश भी की थी।

First Published: Friday, November 15, 2013, 22:51

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