Last Updated: Wednesday, October 9, 2013, 00:02
क्राइम रिपोर्टर/ज़ी मीडियानई दिल्ली: दिल्ली के नैना साहनी मर्डर केस के दोषी सुशील शर्मा को सुप्रीम कोर्ट से मिल गई है राहत अदालत ने उसकी फांसी की सजा को घटाकर उम्रकैद में बदल दिया है। देश की राजधानी को झकझोर कर रख दिया था इस केस ने । पहली वजह थी निर्मम हत्या और दूसरी वजह थी मां बाप का नैना की लाश को पहचानने से इनकार करना। आरोपी सुशील कुमार ने भी अदालत में दावा ठोक दिया था कि हादसे के दिन वो शहर में था ही नहीं । आखिर कैसे मिला, नैना को इंसाफ़।
तारीख-2 जुलाई। दिल्ली की एक उमस भरी रात। इलाका- अशोका रोड। काफी हाई सिक्योरिटी जोन। गश्त पर थे दिल्ली पुलिस के दो सिपाही। अब्दुल नजीर कुंजू और चंद्रपाल। आम दिनों की तरह कुछ चौकस और कुछ बेपरवाह। शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि आने वाला पल दिल्ली के साथ देश भर में जलजला ला देगा। इलाके पर नज़र दौड़ाते हुए वो आगे बढ़ रहे थे। तभी एक उम्रदराज़ महिला ने उनका रास्ता रोक लिया। बदहवासी और परेशानी उसके चेहरे से झलक रही थी। उसने अब्दुल को बताया कि पास में मौजूद बगिया रेस्टोरेंट में से काफी तेजी से धुंआ उठ रहा है।
अब्दुल ने सोचा शायद वहां आग लग गई है। वो फ़ौरन वहां पहुंचा। वहां का नज़ारा देख उसे लगा कि अग़र जल्द कुछ नहीं किया तो बगिया रेस्टोरेंट में लगी आग पास के होटल को चपेट में ले लेगी। उसने तुरंत फायर ब्रिगेड और पुलिस कंट्रोल रुम में फ़ोन लगाया। इसके बाद अब्दुल उपने साथी चंद्रपाल के साथ बगिया रेस्टोरेंट में आ पहुंचा। वहां की फिज़ां में एक अजीब सी गंध तैर रही थी। वो इसकी वजह जानना चाहता था। लेकिन रेस्टोरेंट के मैनेजर ने दरवाज़े पर ही उसका रास्ता रोक लिया। वो भी कुछ घबराया हुआ था। मग़र ये घबराहट कुछ छिपाने के लिए लग रही थी। अब्दुल ने उसे कुरेदना शुरू किया। मैनेजर ने बताया कि अंदर एक राजनैतिक पार्टी के बैनर जलाए जा रहे हैं। वो धुंआ उन्हीं में उठ रहा है। मगर अब्दुल को उसकी बात पर भरोसा नहीं हुआ। उसे लगा कि फिज़ा में जो अजीब सी गंध तैर रही है, वो इंसानी मांस के जलने की है। वो तेजी से रेस्टोरेंट के वॉशरूम में पहुंचा। अब वो नज़ारा उसके सामने था, उसने उसे सन्न कर दिया। उसको आंखे वो खौफनाक मंजर देखकर पत्थर हो चुकी थी।
सिपाही अब्दुल के लिए वो एक दिल दहला देने वाला नजारा था। उसके सामने था एक तंदूर। इसी तंदूर से धुंआ उठ रहा था और अजीब सी बदबू भी उसी धुएं के साथ आ रही थी। सामने पड़े थे कुछ इंसानी मांस के लोथड़े और फर्श पर बिखरा हुआ था खून। जरा सी मशक्कत के बाद पुलिस के हाथ लगे किसी महिला के जिस्म के लोथड़े। जिनका कुछ हिस्सा तंदूर में जलाया जा चुका था और कुछ जलाया जाना बाकी था। आनन फानन में रेस्टोरेंट सील कर दिया गया। उसका मैनेजर पुलिस की गिरफ्त में था। लेकिन एक महिला को बोटियों में बदलकर जलाने वाला शख्स पुलिस से नज़रे बचाकर फ़रार हो चुका था। उस शख्स का नाम था सुशील शर्मा।
रेस्टोरेंट मैनेजर की पहचान सुशील के साथी केशव के तौर पर की गई थी। गिरफ्त में आने के बाद केशव ने बताया कि वो सिर्फ सुशील का आदेश मान रहा था। उसे तो मालूम भी नहीं था कि वो लाश किसकी थी। पूछताछ में पता चला कि सुशील करीब नौ बजे बगिया रेस्टोरेंट आया। वो काफी घबराया हुआ था। उसने रेस्टोरेंट खाली करने को कहा और हर कर्मचारी को रुपए देकर वहां से चला किया। रेस्टोरेंट खाली हो गया। अब सुशील कार से एक लाश निकाल कर लाया फिर रेस्टोरेंट में उसने तसल्ली से उस लाश के टुकड़े-टुकड़े किए। फिर शुरू हुआ लाश की बोटियों को तंदूर में डालने का सिलसिला। बगिया रेस्टोरेंट का मैनेजर केशव, नहीं बता पा रहा था कि लाश किसकी थी? पुलिस जवाब ढूंढने में जुटी। कई जगहों को खंगाला गया, जब सच सामने आया तो पुलिस हैरान रह गई। पता चला कि वो लाश थी सुशील शर्मा की पत्नी की। वो थी नैना साहनी।
इस ख़ौफ़नाक वारदात की ख़बर अब दिल्ली के साथ साथ देशभर में फैल चुकी थी। नैना साहनी की इस निर्मम हत्या के बारे में जानकर लोग सन्न रह गए। इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी पुलिस को चकमा देकर फ़रार हो चुका था। अब पुलिस को तलाश थी सुशील कुमार शर्मा की। उसकी तलाश में जगह-जगह छापे मारे जा रहे थे। मग़र राजनीति की पैंतरेबाजी समझने वाला सुशील पुलिस की हर चाल समझ रहा था। पुलिस उस पर जितना शिकंजा कसने की कोशिश करती, वो उसकी पहुंच से और दूर निकल जाता। जब उसकी तलाश में पूरी दिल्ली में छापेमारी की जा रही थी, तब उसकी तलाश में पूरी दिल्ली में छापेमारी की जा रही थी, तब वो बड़े आराम से गुजरात भवन में रात गुज़ार रहा था। उसने वहां का कमरा एक सीनियर आईएस अधिकारी के नाम पर बुक किया हुआ था। सुबह हुई और वो जयपुर के लिए रवाना हो चुका था। फिर वहां से उसने मुंबई का रुख किया। उधर सुशील शर्मा की गिरफ्तारी पुलिस के लिए चुनौती बन चुकी थी। उस पर एक लाख का इनाम भी रखा जा चुका था। फिर भी उसकी कोई ख़ोज-ख़बर नहीं थी। उसकी तलाश में धूल फांकते-फांकते काफी दिन बीत चुके थे। तभी आई एक ख़बर। पुलिस को मालूम हुआ कि सुशील ने अग्रिम ज़मानत की याचिका दायर की है। वो भी दिल्ली से काफी दूर मद्रास हाईकोर्ट में।
पुलिस कुछ कर पाती उससे पहले ही सुशील को मद्रास हाईकोर्ट से दो हफ्ते की ज़मानत मिल चुकी थी। अब पुलिस ने शतरंज की बिसात फिर से बिछाने की सोची। लेकिन सुशील तो एक क़दम आगे सोच रहा था। उसने फिर पुलिस को चकमा दिया। मद्रास में पुलिस को गच्चा देकर वो बैंगलोर भाग आया। यहां आकर उसने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। अब जाकर पुलिस की जान में जान आई। देश का मोस्टवांटेड आरोपी उसके कब़्जे में था। इस केस को उसके मुकाम तक पहुंचाने का दवाब काफी बढ़ चुका था। आम आदमी की आस से लेकर राजनीति की बढ़ती तपिश ख़ाकी वर्दी साफ महसूस कर रही थी। दिल्ली पुलिस के लिए ये केस काफी महत्वपूर्ण था। इसीलिए इस केस से जुड़े सुराग़ और सबूत इकट्ठा करने के लिए टीमें बनाई गई। साथ ही महक़मे के कई आला अफ़सर भी तफ्तीश में पसीना बहा रहे थे।
आरोपी गिरफ़्त में था। लेकिन मुश्किल ख़त्म नहीं हुई थी।
अब पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। उसे ये साबित करना था कि बगिया रेस्टोरेंट में अधजली लाश नैना की थी। लाश काफी बुरी हालत में थी। कोई ऐसा निशान नहीं दिखाई दे रहा था जो लाश को नैना साहनी की लाश साबित कर पाता। अब पुलिस की उम्मीद थी नैना के परिवार से । लेकिन उन्होंने भी लाश को पहचानने से इंकार कर दिया। ऐसे में सामने आया नैना का पुराना दोस्त मतलूब। उसने खोपड़ी की बनावट के आधार पर आशंका जताई कि वो लाश नैना साहनी की हो सकती है।
10 जुलाई, 1995 को उन्होंने आत्मसमर्पण किया। दिल्ली पुलिस ने सुशील शर्मा के ख़िलाफ़ 19 पन्नों की चार्ज़शीट दाख़िल की। इस चार्ज़शीट के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने 2003 में सुशील शर्मा को मौत की सज़ा सुनाई थी। 2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने सुशील शर्मा की मौत की सज़ा को बरक़रार रखा था। तकरीबन छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुशील शर्मा की फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद में तबदील कर दिया।
First Published: Wednesday, October 9, 2013, 00:02