Last Updated: Thursday, October 24, 2013, 11:52

बैंगलुरू : भारतीय शास्त्रीय संगीत में पॉप का जुझारूपन घोलने वाले सुरों के सरताज मन्ना डे हिंदी सिनेमा के उस स्वर्ण युग के प्रतीक थे जहां उन्होंने अपनी अनोखी शैली और अंदाज से ‘पूछो ना कैसे मैने’, अय मेरी जोहराजबी’ और ‘लागा चुनरी में दाग’ जैसे अमर गीत गाकर खुद को अमर कर दिया था।
मोहम्मद रफी , मुकेश और किशोर कुमार की तिकड़ी का चौथा हिस्सा बनकर उभरे मन्ना डे ने 1950 से 1970 के बीच हिंदी संगीत उद्योग पर राज किया।
पांच दशकों तक फैले अपने करियर में डे ने हिंदी, बंगाली, गुजराती , मराठी, मलयालम , कन्नड और असमी में 3500 से अधिक गीत गए और 90 के दशक में संगीत जगत को अलविदा कह दिया। 1991 में आयी फिल्म ‘प्रहार’ में गाया गीत ‘हमारी ही मुट्ठी में ’ उनका अंतिम गीत था। महान गायक गुरुवार को बेंगलूर में 94 साल की उम्र में दुनिया से रूखसत हो गए ।
यह संगीत की दुनिया का वह दौर था , जब रफी, मुकेश और किशोर फिल्मों के नायकों की आवाज हुआ करते थे लेकिन मन्ना डे अपनी अनोखी शैली के लिए एक खास स्थान रखते थे । रविन्द्र संगीत में भी माहिर बहुमुखी प्रतिभा मन्नाडे ने पश्चिमी संगीत के साथ भी कई प्रयोग किए और कई यादगार गीतों की धरोहर संगीत जगत को दी।
पिछले कुछ सालों से बेंगलूर को अपना ठिकाना बनाने वाले मन्ना डे ने 1943 में ‘तमन्ना’ फिल्म के साथ पाश्र्व गायन में अपने करियर की शुरूआत की थी। संगीत की धुनें उनके चाचा कृष्ण चंद्र डे ने तैयार की थीं और उन्हें सुरैया के साथ गीत गाना था। और ‘सुर ना सजे, क्या गाउं मैं’ रातों रात हिट हो गया जिसकी ताजगी आज भी कायम है । (एजेंसी)
First Published: Thursday, October 24, 2013, 11:52