महिलाओं की जीवनशैली से संबंधित नई बीमारी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम

महिलाओं की जीवनशैली से संबंधित नई बीमारी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम

महिलाओं की जीवनशैली से संबंधित नई बीमारी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोमनई दिल्ली: क्या आप चेहरे के बालों, मुहासों और अनियमित माहवारी की समस्याओं से जूझ रही हैं? अगर हां, तो हो सकता है कि आप पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) की शिकार हों। पीसीओएस जीवनशैली संबंधी बीमारी है, जो औरतों में होती है। भारतीय महिलाओं, खासतौर से युवतियों में यह बीमारी बढ़ रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि, हालांकि इस परिस्थिति के मुख्य कारणों के बारे में पता नहीं चला है, लेकिन यह बीमारी काफी हद तक अंडाशय को प्रभावित करती है। सर गंगाराम अस्पताल में प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ माला श्रीवास्तव बताती हैं कि पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के लिए समस्या दोगुनी हो जाती है क्योंकि लक्षण के बिना रोग का उपचार किया जाना मुश्किल है।

चिकित्सकों का कहना है कि ओपीडी में आने वाले पीसीओएस के कुल मरीजो में से 30-40 प्रतिशत किशोरियां होती हैं। पीसीओएस अधिकतर युवतियों को प्रभावित करता है। मधुमेह, गर्भाशय कैंसर और उच्च कोलेस्ट्रॉल से ग्रसित 40-60 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस से भी पीड़ित हैं।

पूरी दुनिया में महिलाओं की कुल आबादी का 4-11 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस से पीड़ित हैं। शहर में जहां 30 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से पीड़ित हैं, वहीं ग्रामीण महिलाओं में यह समस्या कम है।

मोटापे को इसका मुख्य कारण बताते हुए माला ने बताया कि मोटापा हार्मोन मे बदलाव करता है जिससे पीसीओएस पनपता है। माला के मुताबिक, कुछ महिलाएं इंसुलिन प्रतिरोधी होती हैं, जिससे उनका मोटापा बढ़ता है और हार्मोनल असंतुलन के कारण पीसीओएस होता है।

मैक्स अस्पताल की प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की वरिष्ठ सलाहकार अनीता तलवार कहती हैं कि यह 11 साल की लड़की को भी हो सकता है। महिलाओं के प्रजननीय सालों में यह बीमारी 11.2 प्रतिशत होती है, जबकि किशोरियों में 50 प्रतिशत तक यह बीमारी होती है।

अमेरिक जर्नल क्लीनिकल न्यूट्रीशन में पिछले साल एक अध्ययन प्रकाशित हुआ था जिसमें पीसीओएस पीड़ित महिलाओं में मोटापा और ब्लड शुगर कम करने वाले ग्लाइसेमिक आहार और कम वसा, उच्च रेशेयुक्त आहार के प्रभाव का परीक्षण किया गया।

शोध में पाया गया कि वजन कम करने और ब्लड शुगर नियंत्रित करने वाला खाने वाली महिलाओं में इंसुलिन संवेदनशीलता बेहतर थी। महिलाएं अपनी माहवारी को नियमित करके पीसीओएस से बच सकती हैं। इसके अलावा अंतराल पर हार्मोन प्रोजेस्टेरोन थेरेपी भी एक विकल्प है। यह अनियमित माहवारी और गर्भाशय का खतरा कम करती है। लेकिन यह गर्भनिरोध की सुविधा नहीं देता। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, October 29, 2013, 09:11

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