Last Updated: Monday, May 26, 2014, 21:47
नई दिल्ली : तेज तर्रार छात्र नेता से भाजपा के शीर्ष रणनीतिकार तक अरूण जेटली का सफर काफी प्रभावाशाली रहा है। अब वह नरेन्द्र मोदी कैबिनेट में महत्वपूर्ण मंत्रालय हासिल करने जा रहे हैं। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में जेटली हालांकि कांग्रेस के कैप्टन अमरिन्दर सिंह से अमृतसर सीट पर हार गये लेकिन मोदी के नजदीकी समझे जाने वाले जेटली अब सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
जेटली इससे पहले 1998 से 2004 के बीच राजग के शासनकाल में वाणिज्य एवं उद्योग और कानून मंत्रालय संभाल चुके हैं। 2009 में राज्यसभा में वह नेता प्रतिपक्ष चुने गये।
सफर की शुरूआत जेटली ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य के रूप में की। यह भाजपा की छात्र इकाई है। इसके बाद उनका ग्राफ तेजी से चढा। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनने के बाद वह पार्टी प्रवक्ता बने।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के सत्ता में आने पर वह सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने। बाद में वह विनिवेश मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने। यह वो समय था, जब विनिवेश मंत्रालय का गठन पहली बार किया गया था।
भूतल परिवहन मंत्रालय से जहाज़रानी के अलग होने के बाद वह पहले जहाजरानी मंत्री बने। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री के रूप में वह कैबिनेट मंत्री बने। फिर कानून मंत्री बने लेकिन मई 2004 में राजग की पराजय के बाद जेटली महासचिव के रूप में भाजपा संगठन का कामकाज संभालने लगे और वकालत के अपने पेशे में वापस लौट आये।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में वह अपनी वाकपटुता के लिए पहचाने गये। हर विषय पर वह गहरा अनुसंधान और अध्ययन करके अपनी बात रखते हैं।
जेटली 1980 से पार्टी में हैं लेकिन इस बार के आम चुनाव को छोड दें तो उन्होंने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा। कमाल के रणनीतिकार माने जाने वाले जेटली मोदी की टीम में अहम सदस्य हैं। इस बार के चुनाव में भाजपा ने अपने इतिहास में पहली बार अकेले दम पर बहुमत हासिल किया है। केवल 2014 ही नहीं, 2002 के गुजरात विधानसभा चुनावों में मोदी की जीत सुनिश्चित करने में जेटली ने काफी मदद की थी।
दिसंबर 2007 में जेटली ने मोदी को राज्य में वापस सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । 182 में से 117 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कर्नाटक में 2008 में जेटली ने भाजपा को जबर्दस्त विजय दिलायी और इसके साथ ही दक्षिण के किसी राज्य में भाजपा के लिए सत्ता का पहली बार द्वार खुला। कर्नाटक में 2008 में भी 224 में से 110 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की जो बहुमत से तीन कम थीं। उसके तुरंत बाद जेटली ने पांच निर्दलीय विधायकों से बातचीत कर उन्हें राजी किया और इस प्रकार भाजपा के पास बहुमत का आंकडा आ गया।
(एजेंसी)
First Published: Monday, May 26, 2014, 21:47