Last Updated: Sunday, December 15, 2013, 19:44
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री कार्यालय ने 2002 में हुए गुजरात दंगों के 11 साल बाद भी उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए पत्र व्यवहार का खुलासा करने से इनकार कर दिया है।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक आरटीआई आवेदन का जवाब देते हुए आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1)(एच) का हवाला दिया जिसमें ऐसी सूचना का खुलासा नहीं किया जा सकता जिससे अपराधियों के खिलाफ जांच या संदेह या अभियोग की प्रक्रिया बाधित हो। गोधरा बाद हुए दंगे में करीब 2000 लोग मारे गए थे।
इस जवाब ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या मोदी और तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के बीच हुए पत्र व्यवहार में दंगाइयों या सामूहिक हत्या के जिम्मेदार लोगों के बारे में कोई जानकारी है। आरटीआई आवेदन में पीएमओ और गुजरात सरकार के बीच 27 फरवरी 2002 से 30 अप्रैल 2002 तक राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर हुए सभी पत्र व्यवहार की प्रतियों की मांग की गई थी।
आवेदन में वाजपेयी और मोदी के बीच उस दौरान हुए पत्र व्यवहार की भी प्रतियां मांगी गई थीं, जब राज्य में माहौल तनावपूर्ण था। वर्ष 2002 के गोधरा बांद दंगों के बाद इस तरह की खबर आई थी कि वाजपेयी ने मोदी से ‘राजधर्म’ का पालन करने को कहा था यानी बिना जाति या धर्म या भेदभाव के स्वच्छ प्रशासन दिया जाए। लेकिन मोदी कहते रहे कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि वह ‘राजधर्म’ का पालन कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जयपुर में एक चुनावी रैली के दौरान नरेन्द्र मोदी पर प्रहार करते हुए 21 नवम्बर को कहा था कि भाजपा के एक मुख्यमंत्री पर इतने आरोप लगे कि एक पूर्व प्रधानमंत्री को एक बार उनसे ‘राजधर्म’ का पालन करने को कहना पड़ा। ‘राजधर्म’ पर सिंह की टिप्पणी को ग्वालियर की एक रैली में खारिज करते हुए मोदी ने कहा कि राजधर्म का पालन नहीं करने के लिए वाजपेयी ने कभी उनकी खिंचाई नहीं की बल्कि उन्होंने उनकी प्रशंसा की।
देश के शीर्ष कार्यालय ने सूचना देने से इनकार करते हुए इसके पीछे के कारण के बारे में जानकारी नहीं दी जबकि दिल्ली हुाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि इस खंड के तहत सूचना देने से इनकार करने का अकाट्य कारण बताया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट ने कहा था, ‘यह स्पष्ट है कि जांच प्रक्रिया की मौजूदगी मात्र को सूचना देने से इनकार करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। सूचना रखने वाले प्राधिकरण को संतोषजनक कारण बताना चाहिए कि जानकारी को उजागर करने से जांच प्रक्रिया कैसे बाधित होगी।’ (एजेंसी)
First Published: Sunday, December 15, 2013, 19:44