राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की अर्जी पर सुनवाई पूरी, फैसला बाद में

राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की अर्जी पर सुनवाई पूरी, फैसला बाद में

राजीव गांधी हत्याकांड: दोषियों की अर्जी पर सुनवाई पूरी, फैसला बाद मेंनई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने के लिए दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली। न्यायालय इस पर बाद में फैसला सुनाएगा। इस बीच, केन्द्र सरकार ने इन दोषियों की दलीलों का पुरजोर विरोध किया है।

प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मौत की सजा कम करने के लिए तीन दोषियों संतन, मुरूगन और पेरारिवलन के वकीलों तथा केन्द्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती की दलीलों को सुना।

अटार्नी जनरल ने दलील दी कि दया याचिका के निबटारे में विलंब के आधार पर दोषियों की सजा कम करने हेतु उच्चतम न्यायालय के लिए यह उचित मामला नहीं है। वाहनवती ने स्वीकार किया कि दया याचिकाओं पर निर्णय करने में विलंब हुआ है लेकिन यह विलंब मौत की सजा कम करने के लिये अनुचित, न समझने योग्य और अविवेकपूर्ण नहीं था।

उन्होंने कहा कि अत्यधिक विलंब के आधार पर मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का आधार बनाने संबंधी शीर्ष अदालत का हालिया निर्णय भी इस मामले में लागू नहीं होता है क्योंकि मौत की सजा पाए कैदियों को वेदना, यंत्रणा और अमानवनीय अनुभवों से नहीं गुजरना पड़ा है जैसा कि 21 जनवरी के फैसले में कहा गया है।

इन दोषियों के वकील ने वाहनवती की दलीलों का विरोध करते हुये कहा कि दया याचिकाओं के निबटारे में अत्यधिक विलंब के कारण उन्हें भी कष्ट भोगना पड़ा है। इसलिए शीर्ष अदालत को इसमें हस्तक्षेप करके तीनों दोषियों की सजा उम्र कैद में तब्दील करनी चाहिए।

इन दोषियों ने अपनी याचिका में कहा है कि उनके बाद दया याचिकायें दायर करने वाले कैदियों की याचिकाओं पर फैसला किया गया लेकिन सरकार ने उनकी याचिकाओं को लंबित रखा।

शीर्ष अदालत ने मई, 2012 में मृत्यु दंड के खिलाफ राजीव गांधी के हत्यारों की याचिकाओं पर विचार करने का निर्णय किया था। न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय में दायर याचिकाएं अपने पास मंगा लीं थीं। न्यायालय ने एल के वेंकट की याचिका पर यह आदेश दिया था। वेंकट ने इन याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए कहा था कि तमिलनाडु के तनावपूर्ण माहौल के कारण वहां निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से सुनवाई संभव नहीं है।

तीनों दोषियों की याचिका पर उच्च न्यायालय ने नौ सितंबर, 2011 को उन्हें फांसी देने पर रोक लगाते हुए केन्द्र और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किए थे। इन दोषियों का मुख्य तर्क था कि उनकी दया याचिकाओं के निबटारे में 11 साल चार महीने का वक्त लगा है जो मौत की सजा के निर्णय पर अमल के लिए अनावश्यक कठोर और ज्यादती वाला है जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार का हनन होता है।

शीर्ष अदालत ने 21 जनवरी को अपने फैसले में मौत की सजा पाए 15 कैदियों की सजा उम्र कैद में तब्दील करते हुए कहा था कि ऐसे दोषियों की दया याचिका के निबटारे में विलंब सजा कम करने का आधार हो सकता है। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, February 4, 2014, 14:27

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