Last Updated: Friday, March 28, 2014, 00:25
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने गुरुवार को स्वीकार किया कि मृत्युदंड का सामना कर रहे देविंदर पाल सिंह भुल्लर की दया याचिका पर फैसला लेने में देरी हुई और कहा कि अदालत उसकी पत्नी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की याचिका पर विचार कर सकती है। भुल्लर को दिल्ली में 1993 में हुए बम विस्फोट मामले में संलिप्तता का दोषी ठहराया गया है। उसकी पत्नी नवनीत कौर ने दया याचिका पर फैसला लेने में हुई देरी और उसके मनोरोगी होने के आधार पर मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने की मांग की है।
अटार्नी जनरल जी.ई. वाहनवती ने प्रधान न्यायाधीश पी. सतशिवम, न्यामूर्ति आर. एम. लोढ़ा और न्यायमूर्ति एच. एल. दत्तू और न्यायमूर्ति एस. जे. मुखोपाध्याय की पीठ को बताया कि 21 जनवरी को दिए गए शीर्ष अदालत के फैसले में ही यह तय किया जा चुका है कि राष्ट्रपति द्वारा अत्यधिक और अकारण देरी मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने का आधार होगा।
वाहनवती ने अदालत से कहा कि 21 जनवरी को दिया गया अदालत का फैसला भुल्लर की याचिका को 12 अप्रैल 2013 को ठुकराए जाने के फैसले के विपरीत जाता है। अदालत ने भुल्लर की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि राष्ट्रपति द्वारा मृत्युदंड की सजा पाए व्यक्ति की दया याचिका ठुकराने में देरी न्यायिक समीक्षा की संभावना को उस स्थिति में जन्म नहीं देता जब किए गए अपराध से बड़े पैमाने पर निर्दोष लोग मारे गए हों।
वाहनवती द्वारा उठाए गए बिंदु की सराहना करते हुए अदालत ने कहा कि यह बिलकुल तटस्थ पक्ष है और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत सोमवार या मंगलवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी। शीर्ष अदालत द्वारा 21 जनवरी को दिए गए फैसले पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका ठुकराई जा चुकी है।
21 जनवरी को अदालत ने कहा था कि दया याचिका पर अत्यधिक और अकारण देरी मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने का आधार हो सकता है और यह प्रावधान सिर्फ आपराधिक कानून के तहत सजा पाए लोगों पर ही नहीं, बल्कि आतंकवाद विरोधी कानून के तहत दोषी करार लोगों पर भी लागू होगा। (एजेंसी)
First Published: Friday, March 28, 2014, 00:25