Last Updated: Thursday, October 31, 2013, 22:44
ज़ी मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में गुरुवार को कहा कि नौकरशाहों को राजनीतिक आकाओं द्वारा दिए जाने वाले मौखिक आदेशों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। न्यायालय ने इसके साथ ही नौकरशाहों के आए दिन होने वाले तबादलों की परंपरा को खत्म करने और उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए उनका तय कार्यकाल सुनिश्चित करने का सुझाव दिया है।
नौकरशाही के कामकाज में आमूलचूल सुधारों का सुझाव देते हुए न्यायाधीश के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संसद को अवश्य ही एक कानून बनाना चाहिए जो नौकरशाहों की नियुक्ति, तबादले तथा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का नियमन कर सके।
नौकरशाही में गिरावट का मुख्य कारण राजनीतिक हस्तक्षेप को बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नौकरशाहों को राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए मौखिक आदेशों पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए तथा नौकरशाहों को नेताओं की ओर से दिए गए सभी आदेशों पर कार्रवाई उनसे मिले लिखित संवाद के आधार पर करनी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा है कि एक नौकरशाह को एक तय न्यूनतम कार्यकाल दिए जाने से न केवल पेशेवराना अंदाज और प्रभावशीलता को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि अच्छा प्रशासन भी कायम होगा।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि केंद्र शासित प्रदेशों समेत केंद्र और सभी राज्य सरकारें नौकरशाहों को तय कार्यकाल उपलब्ध कराने के लिए तीन महीने के भीतर निर्देश जारी करें। पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य स्तर पर सिविल सर्विसेज बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। प्रकाश सिंह मामले के संदर्भ में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को तय कार्यकाल देने के लिए पुलिस सुधारों के संबंध में शीर्ष अदालत द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश की तर्ज पर यह फैसला आया है।
नया फैसला नौकरशाही को आजादी देने और उसके कामकाज में स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में मददगार होगा। सुब्रमण्यम ने कहा कि यह फैसला एक मील का पत्थर है। लोक सेवक, निजी सेवक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारा संविधान में विश्वास गहरा हुआ है, लोकतंत्र की मजबूती में हमारा विश्वास गहरा हुआ है क्योंकि देश की शीर्ष अदालत ने समस्याओं को माना है। उन्होंने साथ ही कहा कि खराब प्रशासन लोगों और प्रशासन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
First Published: Thursday, October 31, 2013, 14:12