नौवहन प्रणाली ‘गगन’ का पहला चरण डीजीसीए से प्रमाणित

नौवहन प्रणाली ‘गगन’ का पहला चरण डीजीसीए से प्रमाणित

नई दिल्ली : नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने भारत के विशाल हवाई क्षेत्र, उसके पड़ोसियों तथा आसपास उच्च समुद्री क्षेत्रों में उपग्रह आधारित हवाई नौवहन के लिए मार्ग प्रशस्त करते हुए महात्वाकांक्षी नौवहन प्रणाली ‘गगन’ के पहले चरण को प्रमाणित कर दिया है। ‘जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन’ गगन प्रणाली को प्रमाणित किया जाना इसके अगले कुछ महीनों में पूरी तरह संचालित होने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि डीजीसीए की ओर से गगन के पहले चरण का प्रमाणन इस सप्ताह किया गया।

सूत्रों ने कहा कि प्रमाणन प्रक्रिया पिछले साल अक्तूबर में शुरू हुई थी और इस प्रणाली को लेकर कई तकनीकी पहलुओं और दस्तावेजों की जांच की गई। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से संयुक्त रूप से गगन को विकसित किया गया है। गगन भारत के नौवहन दायरे को न सिर्फ राष्ट्रीय और पड़ोसी देशों के हवाई क्षेत्र के उपर तक विस्तार देगा, बल्कि हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के उपर के क्षेत्र पर भी इसका विस्तार होगा।

हवाई क्षेत्र में गगन के सिग्नल की उपलब्धता यूरोपीय संघ की प्रणाली ‘एगनोस’ तथा जापान की ‘एमसैस’ के दायरे के बीच अंतर को पाटने का काम करेगी। ऐसे में विमानन उद्योग के लिए नौवहन की अपार संभावना हासिल हो सकेगी । अमेरिका, यूरोप और जापान के बाद भारत चौथा ऐसा राष्ट्र होगा जिसके पास व्यापक दायरे को कवर करने वाली अत्याधुनिक नौवहन प्रणाली हो गई है।

इस प्रणाली का संचालन संबंधी परीक्षण एएआई द्वारा पूरा किया गया है। पिछले साल मई-जून में 30 दिनों तक इसके स्थायित्व को लेकर परीक्षण किया गया था। मार्च, 2011 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने गगन के कार्यान्वयन में सहयोग देने के लिए 378 करोड़ रूपये की राशि मंजूर की थी। समिति ने 774 करोड़ रूपये के कुल खर्च वाली इस परियोजना को मंजूरी दी थी जिसके तहत एएआई को 604 करोड़ रूपये और इसरो को 170 करोड़ रूपये का योगदान देना था। (एजेंसी)

First Published: Sunday, January 5, 2014, 14:50

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