Last Updated: Thursday, December 26, 2013, 19:54
ज़ी मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली : गुजरात जासूसी कांड में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। नरेंद्र मोदी के कथित इशारे पर गुजरात में एक महिला की जासूसी के मामले की पड़ताल के लिए केंद्र ने गुरुवार को जांच आयोग नियुक्त करने का फैसला किया। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का फैसला किया गया। यह फैसला जांच आयोग कानून की धारा 3 के तहत किया गया जो केन्द्र को किसी आयोग के गठन का अधिकार देता है।
उधर, उधर, जासूसी मामले की जांच के लिए जांच आयोग नियुक्त करने का फैसला कर केन्द्र सरकार आज विवादों में घिर गई। भाजपा ने कहा कि इस फैसले से राजनीतिक बदले की भावना की बू आ रही है और मोदी को परेशान करने के लिए ऐसा किया गया है। केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने हालांकि भाजपा के आरोप से साफ इंकार करते हुए कहा कि किसी बदले की भावना या राजनीति के तहत ऐसा नहीं किया गया है। शिंदे ने कहा कि आयोग अपनी रिपोर्ट तीन महीने के भीतर सौंप देगा। आयोग की जांच के दायरे में अरुण जेटली का सीडीआर मामला और भाजपा के सत्ता में रहते हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की जासूसी से जुड़ा मामला भी आएगा।
आयोग के गठन का प्रस्ताव गृह मंत्रालय का था, जिसमें सुझाव था कि आयोग का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय का कोई सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश हो। गुजरात सरकार ने हालांकि मामले की जांच के लिए एक आयोग का पहले ही गठन कर रखा है लेकिन केन्द्रीय मंत्रिमंडल का फैसला इन ताजा दावों के परिप्रेक्ष्य में आया है कि कथित जासूसी गुजरात राज्य की सीमाओं से बाहर का भी मामला है।
गौर हो कि वेब पोर्टल गुलेल डाट काम ने दावा किया था कि मोदी के कथित इशारे पर महिला की जासूसी केवल गुजरात ही नहीं बल्कि कर्नाटक से भी जुडा़ मामला है। गुलेल ने एक अन्य पोर्टल कोबरा पोस्ट डाट काम के साथ मिलकर सबसे पहले इस मामले का खुलासा किया था । आरोप था कि गुजरात पुलिस ने 2009 में बेंगलूर में महिला के टेलीफोन को टैप करने के लिए कर्नाटक पुलिस से संपर्क किया था। महिला बेंगलूर में रह रही थी और उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा थे।
कानून की धारा 3 के तहत केन्द्र एक ही मामले में तब तक अन्य आयोग का गठन नहीं कर सकता है जब तक राज्य सरकार द्वारा उसी मुद्दे में गठित आयोग काम कर रहा हो और जब तक केन्द्र सरकार की राय यह न हो कि जांच का दायरा दो या अधिक राज्यों तक बढ सकता है। महिला आर्किटेक्ट की गुजरात पुलिस द्वारा कथित रूप से अवैध निगरानी और फोन टैपिंग नियमों का उल्लंघन था क्योंकि जब महिला राज्य से बाहर गयी तो कथित रूप से उसकी जासूसी केन्द्र की अनिवार्य मंजूरी के बिना की गई ।
वेब पोर्टल ने दावा किया कि यह कदम भारतीय टेलीग्राफ नियम 419ए और गुजरात सरकार की खुद की अधिसूचना (29 मार्च 1997) का उल्लंघन करता है जो स्पष्ट तौर पर कहता है कि फोन टैपिंग तभी हो सकती है जब केन्द्रीय गृह सचिव या राज्य के गृह सचिव की लिखित मंजूरी हो। सूत्रों ने बताया कि ऐसा लगता है कि गुजरात पुलिस ने महिला का फोन तब भी टैप किया, जब वह गुजरात के अलावा महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में थी और इसके लिए केन्द्रीय गृह सचिव से मंजूरी नहीं ली गई।
गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे पहले ही कह चुके हैं कि कई महिला संगठनों और गैर सरकारी संगठनों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को ज्ञापन देकर महिला की कथित जासूसी मामले की जांच की मांग की थी और राष्ट्रपति ने ये सभी ज्ञापन गृह मंत्रालय के विचारार्थ भेजे थे। महिला के पिता ने हालांकि राष्ट्रीय महिला आयोग से कहा था कि उनकी बेटी इस मुद्दे पर कोई जांच नहीं चाहती।
First Published: Thursday, December 26, 2013, 13:53