मैं गांधीवादी नहीं, उपभोक्तावाद का प्रतीक हूं : गोपालकृष्ण गांधी

मैं गांधीवादी नहीं, उपभोक्तावाद का प्रतीक हूं : गोपालकृष्ण गांधी

नई दिल्ली : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पौत्र गोपालकृष्ण गांधी ने गुरुवार को सबको चौंकाते हुए कहा कि वह गांधीवादी नहीं हैं। उन्होंने कहा, `मैं योगी भी नहीं हूं, भोगी भी नहीं हूं, उपभोक्तावाद का एक प्रतीक हूं।`

गोपालकृष्ण गांधी ने यहां गांधी शांति प्रतिष्ठान में महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर आयोजित वार्षिक व्याख्यान में अपनी बात रखी। उन्होंने सवाल किया कि आज गांधी से प्रेरित लोग, जो कभी-कभी स्वयं को गांधीवादी कहते हैं क्या वे खुद पर नियंत्रण रख पाए हैं जिसकी उम्मीद वे दूसरों से करते हैं? जवाब आएगा, नहीं।

गोपालकृष्ण ने आगे कहा, `हम सिर्फ दूसरों पर आरोप लगाते हैं। यदि ऐसा होता रहा तो हम चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे।` पश्चिम बंगाल एवं बिहार के पूर्व राज्यपाल गांधी ने कहा, `आज कई लोग हैं जो गांधी का काम करते हैं लेकिन वे गांधी का नाम नहीं लेते। सही मायने में वही लोग गांधीवादी हैं। उनकी संख्या कम है। उन्हें कोई जानता तक नहीं।`

उन्होंने कहा, `आज के गांधीवादी, आज के नेता उस गांधी को जानते हैं जो आसान व सुलभ है। उस गांधी को नहीं जानते जो दुर्गम और कठिन है।` गोपालकृष्ण ने अफसोस जाहिर किया कि पीड़ा का शोषण अपने शोषण के लिए हो रहा है। आज का यह जमाना हमें आशा कम, निराशा की अनुभूति अधिक करा रहा है। उन्होंने कारपोरेट जगत को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि देश का कारपोरेट जगत हमारे प्राकृतिक संसाधनों एवं खनिजों का बुरी तरह दोहन कर रहा है। इसके खिलाफ कोई राजनीति दल खड़ा होने के लिए तैयार नहीं है।

गोपालकृष्ण ने कहा, `गांधीजी ने प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से विकास के जिस मॉडल का दर्शन प्रस्तुत किया था, आज सबकुछ उसके विपरीत हो रहा है।` उन्होंने आगे कहा कि हमारे देश के उद्योगपति विकसित देशों का हवाला देकर विकास की आड़ में हमारे प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं। यदि ऐसा होता रहा तो आज का जमाना हमें निराशा और अंधकार की ओर ही ले जाएगा।

गोपालकृष्ण ने कहा कि ताज हमारी विरासत का प्रतीक है। इसे बचाने की चुनौती आज हमारे सामने खड़ी है और इस चुनौती को कारपोरेट जगत ने खड़ा किया है। यह ताज सिर्फ ताज नहीं है। यह हमारे देश, हमारी संस्कृति और हमारे विकास को आईना दिखा रहा है। हमें अब कुछ ऐसे प्रयोग करने होंगे, जिससे ऐसे परिणाम निकलें, जो हमें आशा की ओर ले जाएं। (एजेंसी)

First Published: Thursday, January 30, 2014, 20:52

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