Last Updated: Sunday, October 27, 2013, 18:07
नई दिल्ली : जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एन.एन. वोहरा ने 1974 में हुए इंदिरा-शेख समझौते को राज्य के इतिहास में मील का पत्थर बताते हुए कहा है कि ऐसे निर्णय केवल तभी लिए जा सकते हैं जब राज्य और राष्ट्रीय हित अन्य बातों से ऊपर हों।
वोहरा ने विख्यात राजनयिक जी. पार्थसारथी की वषर्गांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा, ‘मैं इस समझौते को दिल्ली और श्रीनगर के बीच वार्ता की लंबी प्रक्रिया में मील का पत्थर मानता हूं।’ वोहरा ने इंदिरा-शेख समझौते की प्रक्रिया में पार्थसारथी की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह ऐतिहासिक समझौता था। यह ऐसी घटना थी जो शेख अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर और देश की राजनीति में वापस लेकर आई।’ इस समझौते पर अब्दुल्ला के प्रतिनिधि मिर्जा अफजल बेग और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रतिनिधि पार्थसारथी ने हस्ताक्षर किए थे।
इसके बाद अब्दुल्ला मुख्यधारा की राजनीति से वर्षों दूर रहने के बाद 1975 में जम्मू कश्मीर में सत्ता में आए थे।
वोहरा ने कहा, ‘मैं किसी भी राज्य में ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकता जहां एक विशेष क्षेत्रीय या स्थानीय दल या पार्टी के घटक राज्य देश के सर्वश्रेष्ठ हित में पुन: सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने के लिए अपने पद छोड़ दें।’ वोहरा ने कहा, ‘अभी तक इसी कारण से हमें पंडितजी (नेहरू) द्वारा शुरू की गई और फिर उनकी बेटी द्वारा आगे ले जाई गई वार्ता की पूरी प्रक्रिया में इस समझौते को बहुत महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में देखना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘शेख की बहुत आलोचना की गई थी और यह आरोप लगाए गए थे कि वह बिक गए हैं। मेरी खुद की समझ के अनुसार यह समझौता महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया है। हमारी राजनीतिक बातचीत के तरीके और शैली में इस प्रकार की चीजें तभी अकसर हो सकती हैं जब राज्य और राष्ट्र हित अन्य चीजों से उपर हो जाएं।’ इस समझौते की शर्तों में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर का संचालन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत ही जारी रहेगा। (एजेंसी)
First Published: Sunday, October 27, 2013, 18:07