Last Updated: Saturday, December 28, 2013, 18:33

नई दिल्ली : राजनीति के वैकल्पिक ब्रांड के प्रतीक के रूप में उभरे और इंजीनियर से लोक सेवक बने अरविंद केजरीवाल ने ‘आप’ को सत्ता में लाकर राजनीतिक सोच बदल दी है। आम आदमी पार्टी की इस जीत से कार्यकर्ताओं की उस पार्टी ने उस व्यंग्य का एक मीठा सा बदला ले लिया है, जिसमें उसे कभी ‘बेहद कमजोर’ बताया गया था। आम आदमी पार्टी के 45 वर्षीय नेता ने सामने से मोर्चा संभालकर गैर परंपरागत तरीके से अपनी मुहिम शुरू की और उनकी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर कांग्रेस के 15 साल के शासन को समाप्त कर दिया।
‘आप’ के एजेंडे में आम आदमी के हितों को केंद्र में रखते हुए केजरीवाल ने तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकीं शीला दीक्षित को हरा दिया। देश के राजनैतिक क्षितिज पर नए सितारे की तरह उभरकर पहली बार में चुनावी मैदान में सफलता हासिल कर लेने वाले केजरीवाल की पार्टी आप को अपना सबसे यादगार उपनाम उस समय मिला था, जब कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने इस साल की शुरआत में ‘आप’ को ‘मैंगो पीपुल इन बनाना रिपब्लिक’ यानि ‘‘राजनैतिक रूप से बेहद कमजोर देश के लोग ’’कहा था।
चेहरे मोहरे से वास्तविक आम आदमी की छवि को साकार करने वाले केजरीवाल को देखकर कहीं यह महसूस नहीं होता कि विनम्र वाणी और सादा हावभाव वाला यह शख्स दिल्ली की सियासत का चेहरा बदलने की कुव्वत रखता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ बरसों पहले शुरू की गई अपनी मुहिम को आईआईटी के इस पूर्व छात्र ने धीरे-धीरे एक जन आंदोलन में बदल दिया और राजनीति के दिग्गजों को जब तक उनका खेल समझ में आता, वह सत्ता के गलियारों तक अपनी पहुंच बना चुके थे। परिवर्तन का सपना लेकर राजनीति में उतरे केजरीवाल अपनी विनम्र वाणी और सहज व्यक्तित्व से राजधानी के लोगों को एक बेहतर कल का सपना दिखाने और नयेपन की उम्मीद जगाने में कामयाब रहे और महंगाई, भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही और नौकरशाही से आजिज मतदाताओं ने 4 दिसंबर को केजरीवाल को अपना नया नेता चुन डाला।
लंबे समय से समाजिक क्षेत्र में सक्रिय रहे जिस केजरीवाल को राजनीति का नौसीखिया कहकर खारिज किया जा रहा था, उसी केजरीवाल ने एक शानदार राजनैतिक शुरआत करते हुए महज एक साल की आम आदमी पार्टी के जरिए वषरें से स्थापित राजनैतिक तंत्र को चुनौती देकर राजनीति में अपनी मजबूत जगह बना ली।
केजरीवाल ने भारतीय राजनीति के खेल के पुराने नियम-कायदों को हटाते हुए इस खेल के नए मापदंड तय किए। भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी के रूप में शुरू हुए इस सामाजिक आंदोलन ने पूरे भारत में मौजूद छात्रों, किसानों, नागरिक अधिकार समूहों, गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला समूहों और शहरी युवाओं की असीमित उर्जा अपने साथ ले ली।
16 अगस्त 1968 को हरियाणा के हिसार में गोबिंद राम केजरीवाल और गीता देवी के घर पैदा हुए अरविंद ने भ्रष्टाचार, बिजली दरों और पानी के बिलों में वृद्धि, महिला सुरक्षा के मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों पर हमला बोलकर पूरे राजनैतिक परिदृश्य में घबराहट पैदा कर दी थी। जनता के मुद्दों को मुखरता के साथ उठाने वाले केजरीवाल इन दोनों ही दलों के वोट बैंकों में सेंध लगाने में कामयाब रहे। दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा की ओर से ‘नगण्य’ माने जा रहे केजरीवाल मुख्य रूप से वर्ष 2011 में जनलोकपाल विधेयक के समर्थन में 75 वर्षीय अन्ना हजारे द्वारा किए गए आंदोलन में सामने आए थे।
रेमन मेगसायसाय पुरस्कार प्राप्त केजरीवाल की वाणी में बेहद कोमलता है लेकिन उनके इरादे फौलाद से भी ज्यादा मजबूत हैं। केजरीवाल किरण बेदी, प्रशांत भूषण और अन्य लोगों के साथ टीम अन्ना के सदस्य रह चुके हैं। जनलोकपाल विधेयक को लागू करने के अभियान के तहत केजरीवाल इस विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए सरकार द्वारा गठित समिति में नागरिक समाज के प्रतिनिधि सदस्य के रूप में शामिल थे।
भारत के गरीब नागरिकों को आरटीआई कानून की मदद से सशक्त बनाने की केजरीवाल की कोशिश ने उन्हें वर्ष 2006 में रेमन मेगसायसाय पुरस्कार (इमर्जेंट लीडरशिप) दिलवाया। फरवरी 2006 में आयकर विभाग के संयुक्त सचिव पद से इस्तीफा देने के बाद केजरीवाल पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और उन्होंने एक एनजीओ शुरू कर लिया। पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन नामक इस संस्था को उन्होंने पुरस्कार में मिली राशि से शुरू किया था।
केजरीवाल सिर्फ शाकाहारी भोजन करते हैं और घर पर बना भोजन ही करना पसंद करते हैं। उनका विवाह सुनीता से हुआ है। सुनीता खुद भी भारतीय राजस्व सेवा में एक अधिकारी हैं। ये दोनों मसूरी में राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में एक ही बैच में थे। इस दंपति के दो बच्चे हैं। उनकी बेटी का नाम हषिर्ता और बेटे का नाम पुलकित है। केजरीवाल की एक छोटी बहन और एक भाई है। (एजेंसी)
First Published: Saturday, December 28, 2013, 15:34