Last Updated: Friday, January 24, 2014, 14:59
नई दिल्ली : देश के 31 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है जो लड़कियों के स्कूल की पढ़ायी बीच में ही छोड़ने का एक अहम कारण के रूप में सामने आया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2012.13 में देश के 69 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था है जो 2009-10 में 59 प्रतिशत रही थी। इस तरह देश के 31 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं है। हालांकि, 95 प्रतिशत स्कूलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध है।
चंडीगढ़, दिल्ली, दमन.दीव, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, लक्षद्वीप, पंजाब, पुडुचेरी में सभी स्कूलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर कुल नामांकन बढ़कर 13.47 करोड़ और उच्च प्राथमिक स्तर पर 6.49 करोड़ हो गया। प्राथमिक शिक्षा स्तर पर दाखिला लेने वालों में लड़कियों का प्रतिशत 48 और उच्च प्राथमिक स्तर पर 49 प्रतिशत है । देश में प्रारंभिक शिक्षा के स्तर पर स्कूलों (सरकारी और गैर सहायता प्राप्त) की संख्या 11,53,472 है। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2012.13 में 88 प्रतिशत स्कूलों में स्कूल प्रबंधन समिति का गठन हुआ है जो शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) का एक अहम मानदंड है। इन समितियों में 75 प्रतिशत सदस्य ऐसे हैं जिनके बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं और इनमें 50 प्रतिशत महिलाएं हैं।
शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के लागू होने के तीन वर्ष से अधिक गुजरने के बाद भी करीब 20 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में पेशेवर शिक्षकों की कमी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 26 राज्यों ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित की है।
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत यह व्यवस्था बनाई गई है कि केवल उन लोगों की शिक्षकों के रूप में नियुक्ति की जायेगी जो शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में उत्तीर्ण होते हैं। (एजेंसी)
First Published: Friday, January 24, 2014, 14:59