Last Updated: Tuesday, November 19, 2013, 20:52

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से वंचित करने के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि संसद द्वारा कानून में संशोधन के मद्देनजर इस मसले पर गौर करने की जरूरत नहीं है।
शीर्ष अदलात ने कहा कि इस संशोधन की संवैधानकिता के सवाल पर अलग से विचार किया जाएगा। इससे पहले, गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी ने केन्द्र की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उसने इस संबंध में जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन को चुनौती दे रखी है।
न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि आप इसे चुनौती दीजिए। इस पर अलग से विचार किया जाएगा। न्यायाधीशों ने कहा कि संशोधन के परिणामस्वरूप पुलिस हिरासत या जेल में रहने के कारण एक व्यक्ति मतदाता होने से वंचित नहीं हो सकता है। इसलिए वह राज्य विधान सभा और संसद का चुनाव भी लड़ सकता है। न्यायालय ने शुरू में कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के मद्देनजर केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका निरर्थक हो गई है लेकिन बाद में गैर सरकारी संगठन के जोर देने पर इसे खारिज करने का आदेश दिया गया।
शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई को अपने फैसले में कहा था कि पुलिस हिरासत या जेल में बंद व्यक्ति विधानमंडलों के चुनाव नहीं लड़ सकता है। इस व्यवस्था से जेल में बंद रहते हुये विचाराधीन राजनीतिकों के चुनाव लड़ने की संभावनाएं खत्म हो गई थी। न्यायालय ने कहा कि सिर्फ एक मतदाता ही चुनाव लड़ सकता है और पुलिस हिरासत में बंद व्यक्ति को मत देने का अधिकार नहीं होता है। शीर्ष अदालत की इस व्यवस्था को निष्प्रभावी बनाने के लिये संसद ने सितंबर में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62 में संशोधन करके यह व्यवस्था की थी कि जेल में बंद व्यक्ति को भी चुनाव लड़ने का अधिकार है। यह संशोधन उच्चतम न्यायालय के निर्णय की तिथि 10 जुलाई, 2013 से ही प्रभावी हो गया है।
First Published: Tuesday, November 19, 2013, 20:52