Last Updated: Sunday, March 9, 2014, 18:38

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि हनीमून के दौरान अपने जीवनसाथी से संसर्ग से इनकार करना किसी प्रकार का अत्याचार नहीं है। अदालत ने इसके साथ ही इस आधार पर एक दंपति की शादी को भंग करने के संबंध में परिवार अदालत द्वारा दिए गए फैसले को भी खारिज कर दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद कभी कभार कमीज और पैंट पहनकर आफिस जाती है और आफिस के काम के संबंध में शहर जाती है तो यह उसके पति के प्रति उसका अत्याचार नहीं है।
न्यायाधीश वी के ताहिलरमानी और न्यायाधीश पी एन देशमुख ने इस सप्ताह की शुरुआत में दिए गए अपने एक फैसले में कहा, ‘शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में आकलन किया जाना चाहिए तथा एक विशेष अवधि में इक्का दुक्का घटनाएं अत्याचार नहीं मानी जाएंगी।’ पीठ ने कहा कि बुरे व्यवहार को लंबी अवधि में देखा जाना चाहिए जहां किसी दंपति में से एक के व्यवहार और गतिविधियों के कारण रिश्ते इस सीमा तक खराब हो गए हों कि दूसरे पक्ष को उसके साथ जिंदगी बिताना बेहद मुश्किल लगे और यह मानसिक क्रूरता के बराबर हो।
पीठ ने आगे कहा, ‘केवल चिड़चिड़ाहट, झगड़ा और सभी परिवारों में आए दिन होने वाली सामान्य छोटी मोटी घटनाएं शादीशुदा जिंदगी में होने मात्र से अत्याचार के आधार को तलाक देने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता।’ अदालत 29 वर्षीय विवाहिता द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी जो दिसंबर 2012 के परिवार अदालत के आदेश से परेशान थी। परिवार अदालत ने क्रूरता के आधार पर उसके पति द्वारा की गई अपील पर तलाक का आदेश दिया था।
मामले के अनुसार, वर्ष 2009 में विवाह के बाद यह दंपत्ति हनीमून के लिए महाबालेश्वर हिल स्टेशन गया था और पति ने शारीरिक संबंध बनाकर विवाह को पूर्ण करने का प्रयास किया लेकिन पत्नी ने उसे ऐसा नहीं करने दिया। पति के अनुसार, यह अत्याचार के समान है। उसके वकील हेमंत घडीगांवकर ने तर्क दिया कि एक पक्ष द्वारा वैवाहिक जीवन के जरूरी दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहना दूसरे पक्ष के लिए अत्याचार के समान है। वैवाहिक जीवन में एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष की यौन इच्छाओं को संतुष्ट करना जरूरी और सैद्धांतिक दायित्व है जो कि एक स्वाभाविक प्रवृति है।
उधर, पत्नी के वकील पंकज शिंदे ने कहा कि पत्नी के सबूत साफ दर्शाते हैं कि उस समय वह माहवारी से गुजर रही थी और इसलिए उसने अपने पति को विवाह को मान्य करने के लिए संसर्ग की अनुमति नहीं दी। शिंदे ने आगे कहा कि उन चार दिनों के अलावा, जब वे महाबलेश्वर हनीमून के लिए गए थे, उसके पति ने यह आरोप नहीं लगाए कि उसकी पत्नी ने उसके बाद भी उसके साथ संसर्ग से इनकार करना जारी रखा।
अत्याचार के अपने आरोपों को सही साबित करने के लिए पति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी पत्नी का उसके तथा उसके माता-पिता के साथ झगड़ा होता रहता था और उसने कभी उसके माता पिता की इज्जत नहीं की। पीठ ने कहा कि अभी तक जो भी आरोप लगाए गए हैं उनमें कोई तत्व की बात नहीं है और वे अस्पष्ट और सामान्य से आरोप हैं। इसलिए अदालत की नजर में पत्नी द्वारा पति पर अत्याचार किए जाने की बात साबित नहीं होती।
पति ने यह भी आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी शादी के 45 दिन बाद आफिस के काम से नासिक गई जबकि उसने उससे नहीं जाने की अपील की थी। अदालत ने हालांकि कहा कि यदि पत्नी कामकाजी है तो आफिस के काम से जाना उसके लिए जरूरी है। उसके नासिक जाने में कुछ गलत नही है। इसलिए इसे अत्याचार नहीं कहा जा सकता। (एजेंसी)
First Published: Sunday, March 9, 2014, 18:38