सुप्रीम कोर्ट में किशोर शब्द पर नए सिरे से सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में किशोर शब्द पर नए सिरे से सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में किशोर शब्द पर नए सिरे से सुनवाई नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने किशोर न्याय कानून में ‘किशोर’ शब्द की नए सिरे से व्याख्या के लिए दायर याचिकाओं पर मंगलवार को अंतिम सुनवाई शुरू कर दी। इन याचिकाओं में अनुरोध किया गया है कि जघन्य अपराध में लिप्त किशोर की स्थिति का निर्धारण किशोर न्याय बोर्ड पर छोड़ने की बजाय इसे फौजदारी अदालतों पर छोड़ा जाए।

ये याचिकाएं भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी और 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की शिकार युवती के पिता ने दायर की हैं। इनमें किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून 2000 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष स्वामी ने बहस शुरू करते हुए दलील दी कि इस कानून में ‘किशोर’ शब्द की सीधी सपाट व्याख्या करते हुए कहा गया है कि 18 साल से कम आयु का व्यक्ति अवयस्क है। उनका तर्क है कि यह बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कंवेन्शन (यूएनसीआरसी) और बीजिंग नियमों के खिलाफ है।

यूएनसीआरसी और बीजिंग नियमों के अनुसार अपराध की जिम्मेदारी के लिए आयु का आकलन करते समय अपराध करने वाले व्यक्ति की मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता को ध्यान में रखना होगा। स्वामी ने कहा कि वह न तो किशोर कानून के तहत किशोर की आयु 18 साल से कम करने की मांग कर रहे हैं और न ही उनका आग्रह किसी किशोर विशेष पर केन्द्रित है। स्वामी का संकेत 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की वारदात के अभियुक्तों में एक किशोर के शामिल होने की ओर था। उन्होंने कहा कि वह तो सिर्फ एक उदाहरण दे रहे हैं।

भाजपा नेता ने कहा कि सहमति से यौन संबंध की आयु घटाकर 16 साल की जा रही है। इसलिए बलात्कार जैसे अपराध में 18 साल की उम्र तर्कसंगत होनी चाहिए और यही वजह है कि किशोर की भूमिका का निर्धारण करते समय उसकी मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता पर जोर दिया जा रहा है। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, January 28, 2014, 21:49

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