Last Updated: Wednesday, April 9, 2014, 15:07

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जाट समुदाय को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने के लिए चुनावों से पहले केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना पर बुधवार को रोक लगाने से इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद हम प्रथम दृष्टया इस बात से संतुष्ट हैं कि यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि फैसला लेने (जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने) के लिए कोई सामग्री नहीं है।
न्यायमूर्ति सदाशिवम, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एनवी रमन की पीठ ने कहा कि कोई मत व्यक्त करने से पहले, आगे के विचार के लिए हम केंद्र को निर्देश देते हैं कि वह तीन हफ्ते के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करे। इस मामले को एक मई को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने के बाद न्यायाधीशों ने कहा कि हम रोक लगाने का अनुरोध अस्वीकार कर रहे हैं। ओबीसी आरक्षण रक्षा समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि आदर्श आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले चार मार्च को इस बारे में अधिसूचना जारी की गयी है और ऐसा सत्तारूढ़ दल ने वोट हासिल करने के लिये किया है।
इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले लिये गये सरकार के फैसले के रास्ते में वे नहीं आ सकते हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार तो सरकार है। हम इस पर रोक नहीं लगा सकते, आप भी नहीं लगा सकते। एक दिन पहले :आचार संहिता: तक वे निर्णय ले सकते हैं। वेणुगोपाल ने कहा कि सत्तारूढ़ दल ने निजी लाभ के लिये फैसला लिया है। न्यायालय के एक अप्रैल के आदेश का पालन करते हुये केंद्र ने आज जाटों को अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल करने के मसले से संबंधित केन्द्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय सहित सारे दस्तावेज और फाइलें न्यायाधीशों के समक्ष पेश कीं।
न्यायालय ने केन्द्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता के पराशरन से कहा कि सारी सामग्री जवाबी हलफनामे के रूप में दाखिल की जानी चाहिए। न्यायाधीशों ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि इस आदेश (जाटों को अन्य पिछड़े वर्गो की सूची में शामिल करने) का आधार क्या है। पराशरन ने कहा कि सारे कारण रिकार्ड में हैं। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, April 9, 2014, 14:04