Last Updated: Tuesday, December 17, 2013, 19:41

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को व्यवस्था दी कि सीबीआई को अदालती निगरानी वाले भ्रष्टाचार के मामलों में वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन में केन्द्र सरकार की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय में यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली पुलिस स्थापना कानून की धारा 6(ए) के तहत सरकारी कर्मचारियों की जांच से पहले केंद्र की मंजूरी जरूरी है, इस पर न्यायमूर्ति आर.एम.लोढ़ा और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की सरकारी मंजूरी की जरूरत नहीं है।
इसने एजेंसी को मजबूत किया है जिससे वह सरकार से पूर्व मंजूरी लिए बिना अधिकारियों के खिलाफ जांच कर सकती है। न्यायमूर्ति आर एम लोधा की अध्यक्षता में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने केन्द्र की मंजूरी के इंतजार के बगैर कोलगेट में कथित रूप से संलिप्त नौकरशाहों के खिलाफ अभियोजन के लिए सीबीआई का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
खंडपीठ ने कहा कि जब कोई मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अदालत की निगरानी में हो तो दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन (डीएसपीई) कानून की धारा 6ए के तहत मंजूरी आवश्यक नहीं है। इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने भ्रष्टाचार के सभी मामलों में वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच के लिए आवश्यक मंजूरी के केंद्र के रख पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इस प्रकार का वैधानिक प्रावधान कोलगेट जैसे मामलों मे अदालती निगरानी वाली जांच में न्यायिक शक्ति को कम करेगा।
उसने केंद्र के इस दावे को दरकिनार कर दिया था कि डीएसपीई कानून की धारा 6ए के तहत संयुक्त सचिव स्तर के दर्जे या उससे उपर के दर्जे के अधिकारियों के खिलाफ जांच करने के लिए सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी की आवश्यकता होती है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, December 17, 2013, 12:51