Last Updated: Monday, April 28, 2014, 14:23
ज़ी मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 में ललकिला हमला मामले में लश्कर ए तोएबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की मौत के सजा के अमल पर सोमवार को रोक लगा दी। इस हमले में सेना के दो जवानों सहित तीन लोग मारे गए थे।
प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इसके साथ ही आरिफ के आवेदन पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया। आरिफ ने अपने आवेदन में इस आधार पर अपनी रिहाई का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया था कि वह पहले ही 13 साल से ज्यादा समय जेल में गुजार चुका है और इतनी लंबी अवधि के बाद उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए।
उसने कहा कि उसकी मौत की सजा पर अमल का मतलब उसे अपराध के लिए दो बार सजा देने के समान होगा क्योंकि वह 13 साल से अधिक वक्त जेल में काट चुका है जो करीब उम्रकैद की सजा के बराबर है। याचिका में यह भी कहा गया है कि आरिफ न्याय प्रक्रिया में हुए लंबे विलम्ब और सरकार की ओर से सजा के कार्यान्वयन में हुई देरी की वजह से शारीरिक और मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। शीर्ष अदालत ने 10 अगस्त 2011 को आरिफ की मौत की सजा बरकरार रखते हुये उसकी अपील खारिज कर दी थी। आरिफ को सत्र न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई थी जिसकी पुष्टि दिल्ली उच्च न्यायालय ने की थी।
उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा बरकरार रखते हुए कहा था कि हमला भारत को ‘आतंकित करने के लिए’ पाकिस्तान द्वारा किया गया एक ‘दुस्साहसिक प्रयास’ और देश के खिलाफ युद्ध है। आरिफ ने 13 जुलाई 2007 के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसकी मौत की सजा को बरकरार रखा गया था, लेकिन अलग-अलग सजा पाने वाले छह अन्य को बरी कर दिया था। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर आरिफ की अपील खारिज कर दी थी। निचली अदालत ने उसे देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और लालकिले में सेना के दो जवानों सहित तीन लोगों की हत्या करने के जुर्म में मृत्युदंड सुनाया था। उच्च न्यायालय ने श्रीनगर निवासी पिता-पुत्र नजीर अहमद कासिद और फारूक अहमद कासिद तथा पाकिस्तानी नागरिक आरिफ की भारतीय पत्नी रहमाना यूसुफ फारूकी सहित छह दोषियों के मामले में निचली अदालत के फैसले को पलट दिया था। नजीर और फारूक को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, जबकि रहमाना को सात साल कैद की सजा सुनाई गई थी।
First Published: Monday, April 28, 2014, 12:24