Last Updated: Tuesday, January 7, 2014, 23:31

कोलकाता: रिटायर न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली ने कहा कि उन्होंने अतिरिक्त विवाद खत्म करने के लिए पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है और जिस आधार पर केन्द्र ने राष्ट्रपति को उनके खिलाफ सिफारिश की है वह टिकने वाला नहीं है और मिथ्याधारित है। मंगलवार को जारी एक सरकारी प्रेसनोट में बताया गया कि न्यायमूर्ति गांगुली ने आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात रखते हुए कल राज्यपाल को एक चिट्ठी सौंपी थी।
प्रेस नोट में कहा गया है, ‘राज्यपाल ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफे को मंजूरी दे दी।’ उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश गांगुली लॉ इटर्न द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के आलोक में पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए गहरे दबाव में थे। अपने त्यागपत्र में 66 वर्षीय न्यायमूर्ति ने अपने खिलाफ लगे आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा, ‘मैं जोर दे कर कहना चाहूंगा कि इलेक्ट्रानिक और प्रिंट दोनों मीडिया में मेरे खिलाफ जो आरोप लग रहे हैं वे बेबुनियाद हैं और मैं उनसे इनकार करते हूं।’
समिति ने गांगुली को प्रशिक्षु वकील के लिखित एवं मौखिक बयान के आधार पर दोषी ठहराया था। पैनल ने पाया था कि ली मैरीडियन होटल के कमरे में पिछले साल 24 दिसंबर को न्यायाधीश द्वारा लड़की के साथ किया गया व्यवहार ‘अस्वीकार्य बर्ताव की श्रेणी (यौन प्रकृति वाला अस्वीकार्य मौखिक, अमौखिक बर्ताव) में आता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन सेवानिवृत्त न्यायाधीश के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पत्र लिखा था।
न्यायमूर्ति गांगुली उच्चतम न्यायालय की उस पीठ के हिस्सा थे जिसने टू जी आवंटन घोटाले में कई आदेश दिए थे जिनमें केंद्र द्वारा दूरसंचार कंपनियों को दिए गए 112 लाइसेंस को खारिज करना भी शामिल है। पिछले महीने प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि उन्होंने लॉ इंटर्न का कभी उत्पीड़न नहीं किया और न ही उससे या किसी अन्य महिला इंटर्न से अवांछित व्यवहार किया था। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, January 7, 2014, 18:34