शारदीय नवरात्र का शुभारंभ, पहले दिन शैलपुत्री की पूजा

शारदीय नवरात्र का शुभारंभ, पहले दिन शैलपुत्री की पूजा

शारदीय नवरात्र का शुभारंभ, पहले दिन शैलपुत्री की पूजाज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली : शारदीय नवरात्र का आज शुभारंभ हो गया है। नवरात्र में पूजा के दौरान सबसे पहले शैलपुत्री की ही उपासना की जाती है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण वह शैलपुत्री कहलाती हैं। वृषभ शैलपुत्री का वाहन है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है।

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

मां शैलपुत्री एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, लेकिन भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया।

बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुख से व्यथित होकर भगवान शंकर ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया।

यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से ही हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

First Published: Saturday, October 5, 2013, 09:55

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