Last Updated: Sunday, March 16, 2014, 15:40
नई दिल्ली : आगामी लोकसभा चुनाव में सरकार, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा 30,000 करोड़ रूपये की भारी भरकम राशि खर्च किए जाने की संभावना है। यह भारतीय इतिहास में सर्वाधिक खर्चीली चुनावी प्रक्रिया होगी। सोलहवीं लोकसभा के लिए होने वाला अनुमानित खर्च 2012 में अमेरिका में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव से संबंधित खर्च से प्रतिद्वंद्विता करता नजर आता है। अमेरिकी चुनाव में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों ने सात अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 42,000 करोड़ रूपये:) खर्च किए थे।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज द्वारा चुनाव अभियान खर्च पर कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक करोड़पति उम्मीदवारों, कॉरपोरेट्स और कांट्रैक्टरों द्वारा लगाए जा रहे बेहिसाबी पैसे ने चुनाव खर्च में काफी इजाफा किया है। 16वीं लोकसभा के लिए अनुमानित खर्च 30 हजार करोड़ रूपये में से सरकारी खजाने को चुनाव प्रक्रिया पर 7 हजार से 8 हजार करोड़ रूपये तक का खर्च वहन करना होगा।
चुनाव आयोग द्वारा जहां करीब 3,500 करोड़ रूपये खर्च किए जाने की संभावना है, वहीं भारतीय रेलवे, कई अन्य सरकारी एजेंसियां और राज्य सरकारें भी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए इतनी ही राशि खर्च करेंगी। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, लेकिन अंतिम आंकड़े चुनाव प्रक्रिया के बाद उभरकर आएंगे।
अध्ययन में कहा गया है कि लोकसभा चुनावों के लिए खर्च की अधिकतम सीमा 70 लाख और न्यूनतम सीमा 54 लाख रूपये तक बढ़ाया जाना भी चुनाव खर्च के 30 हजार करोड़ रूपये के आंकड़े तक पहुंच जाने का एक कारण है । सामान्य, अनधिकृत अनुमान के मुताबिक चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाए जाने के बाद 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार ही खुद 4 हजार करोड़ रूपये खर्च कर सकते हैं ।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने यहां बताया, हाल तक राजनीतिक दल ही चुनावों में अधिक खर्च किया करते थे। अब चलन बदल गया है और ज्यादातर मामलों में उम्मीदवार खुद पार्टी से ज्यादा खर्च कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि यह धन आ कहां से आ रहा है। यह करोड़पति उम्मीदवारों, कॉरपोरेट्स और कांट्रैक्टरों से आ रहा है। सीएमएस के अध्ययन में दावा किया गया कि 1996 के लोकसभा चुनाव में 2,500 करोड़ रूपये खर्च हुए थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में यह राशि 10 हजार करोड़ रूपये तक पहुंच गई।
राव ने दावा किया कि विभिन्न राज्यों में विभिन्न उद्यम चुनावी फंडिंग में योगदान देते हैं। चाहे यह तेंदू पत्ती का व्यवसाय हो, खनन का व्यवसाय हो या सीमेंट उद्योग हो, वे सभी योगदान देते हैं। चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय की वेबसाइटों से जुटाए गए आंकडों तथा चुनाव समिति द्वारा संग्रहित आंकडे दिखाते हैं कि लोकसभा चुनाव कराने पर खर्च 20 गुना..1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के 60 पैसे से 2009 में हुए चुनाव के 12 पैसे तक..बढ़ चुका है।
वर्ष 1952 के लोकसभा चुनाव पर कुल मिलाकर 10.45 करोड़ रूपये खर्च हुए थे, जबकि 2009 के चुनावों में सरकार ने 846.67 करोड़ रूपये खर्च किए। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में करीब 1,114 करोड़ रूपये के साथ सरकारी खजाने को सर्वाधिक खर्च वहन करना पड़ा। इस चुनाव में प्रति मतदाता खर्च भी सर्वाधिक था क्योंकि सरकार ने प्रति निर्वाचक 17 रूपये खर्च किए। वर्ष 1999 के आम चुनाव के मुकाबले चुनाव खर्च में 17.53 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वह भी इस तथ्य के बावजूद कि मतदान केंद्रों में 11.26 प्रतिशत की कमी आई।
पहले छह लोकसभा चुनावों में प्रति निर्वाचक खर्च एक रूपये से कम था, लेकिन बाद के चुनाव ने चुनाव खर्च में भारी बढ़ोतरी देखी। खर्च में वृद्धि का कारण यह हो सकता है कि कई राजनीतिक दल चुनाव मैदान में कूद पड़े और यहां तक कि चुनाव लड़ने वाले निर्दलियों की संख्या भी काफी बढ़ गई। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पहली बार मतदाता पर्ची चुनाव की तारीख से पहले बांटे जाने, वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल के प्रयोग से खर्च और भी बढ़ सकता है।
लोकसभा के लिए वास्तविक चुनाव आयोजन का समूचा खर्च केंद्र द्वारा वहन किया जाता है। लेकिन, कानून एवं व्यवस्था बहाल रखने से संबंधित खर्च राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है। सीएमएस के अध्ययन के मुताबिक यदि इस चुनाव पर 30 हजार करोड़ रूपये खर्च होते हैं तो प्रति मतदाता खर्च 400 से 500 रूपये बैठेगा। इसने कहा, यदि वोट प्रतिशत 75 प्रतिशत रहता है तो खर्च 500 से 600 रूपये प्रति व्यक्ति होगा। (एजेंसी)
First Published: Sunday, March 16, 2014, 15:40