सहारा के नए प्रस्ताव को भी सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

सहारा के नए प्रस्ताव को भी सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

नई दिल्ली : सहारा समूह के अपने प्रमुख सुब्रत राय को संकट से बाहर निकालने के लिये पेश नया प्रस्ताव भी उच्चतम न्यायालय को पसंद नहीं आया और उसने इस प्रस्ताव को यह कहते हुये खारिज कर दिया कि कंपनी कोई ठोस प्रस्ताव पेश करने में असफल रही है।

न्यायमूति के.एस.राधाकृष्णन और जे.एस. खेहर की पीठ ने विस्तृत आदेश और निर्देश लिखने के लिये अपने चैंबर में जाने से पहले कहा ‘‘हम प्रस्ताव से खुश नहीं हैं। अब तक कोई भी ठोस प्रस्ताव नहीं आया है। हम इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इसमें कोई बैंक गारंटी नहीं है। वंदना भार्गव को छोड़कर इनमें सभी दिल्ली में हिरासत में रहेंगे।’’ पीठ ने इस बात को लेकर नाराजगी जताई कि बार बार उन्हीं बातों को दोहराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश की सर्वोच्चय अदालत के समक्ष सहारा के लोग ‘‘झूठा शपथ पत्र’’ और परस्पर ‘‘विरोधाभासी वक्तव्य’’ दे रहे हैं।

पीठ ने कहा ‘‘हमें यह कहते हुये दुख हो रहा है कि उच्चतम न्यायालय में झूठे और तथ्यों से मेल नहीं खाने वाले शपथपत्र दाखिल किये जा रहे हैं। यहां तक कि अवमानना के मामले में भी ऐसा किया गया है। हर स्तर पर झूठे और मित्था शपथपत्र दाखिल किये गये हैं।’’

राय के वकील राम जेठमलानी ने जब यह कहा कि सहारा प्रमुख को अदालत में पेश कर दिया गया है और ‘‘कानून को पूरा सम्मान दिया गया है और अदालत की प्रतिष्ठा बरकरार रखी गई है,’’ तो पीठ ने उत्तर प्रदेश पुलिस से उसके 26 फरवरी के आदेश के अनुपालन के बारे में जानना चाहा जिसमें गैर-जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। राय, तीनों निदेशक रवि शंकर दुबे, अशोक रॉय चौधरी और वंदना भार्गव-न्यायालय में उपस्थित हैं, इस बात से संतुष्ट पीठ ने सहारा प्रमुख को अपना वक्तव्य रखने की अनुमति दी।

राय ने इसके बाद पीठ के समक्ष कहा ‘‘मैं 26 फरवरी को अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं होने के लिये बिना शर्त माफी मांगता हूं। कृपया मेरी इस माफी को स्वीकार करें। मुझे आप में पूरा भरोसा है।’’ पीठ ने कहा ‘‘हम आपकी माफी को स्वीकार करते हैं।’’ जैसे ही जेठमलानी ने नये प्रस्ताव के बारे में कुछ कहना चाहा तभी उन्हें दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता सी.ए. सुंदरम ने बीच में बाधित किया। वह भी सहारा के लिये ही न्यायालय में पेश हुये थे। जेठमलानी ने सुंदरम को अपनी बात विस्तार पूर्वक रखने के लिये समय दिया। जिस पर पीठ ने कई सवाल दागे। ‘‘यह कैसा प्रस्ताव है? हमें आश्चर्य होता है कि आप सेबी पर क्यों जिम्मेदारी डाल रहे हैं।

संपत्ति को बेचने का प्रस्ताव जब पीठ के समक्ष रखा गया तो पीठ ने कहा, ‘‘हमें आपकी संपत्ति बेचने में कोई रचि नहीं है। आप हमें पिछले दो साल से कह रहे हैं, यह आपकी सिरदर्दी है। आपको यह कर देना चाहिये था। हमारा फैसला बिल्कुल साफ है जबकि आपके प्रस्ताव में कई किंतु परंतु हैं। हम इसे बेचने नहीं जा रहे हैं। हमारे फैसले का क्या उद्देश्य है? आप जैसा चाहे करें। आप बहुत सारा कर्ज जुटा सकते हैं। अपनी संपत्ति बेचें या जो कुछ आप करना चाहें।’’ ‘‘हमने अपनी तरफ से पूरा समय दिया। कभी एक और कभी दूसरी वजह से आपने इसमें देरी की, हमें आगे नहीं बढ़ने दिया। जो ठीक लगे वह करो। संपत्ति बेचने के लिये आपको न्यायालय की अनुमति क्यों चाहिये।? इसे आप अपने आप बेचिये।

पीठ ने कहा ‘‘इसके बारे में हम पिछले डेढ़ साल से सुन रहे हैं। यह मई 2012 से चल रहा है, हम क्या करें? ‘‘तुम्हारी और तुम्हारी कंपनी के पास काफी धन है, फिर आप इसे लौटाते क्यों नहीं हैं।’’ पीठ ने इस दौरान सहारा के वकील को अपने पुराने आदेशों के बारे में बताया। जिसमें 31 अगस्त 2012 का आदेश भी शामिल है। इसके बाद तीन न्यायधीशों की तीसरी पीठ के आदेश की भी याद दिलाया जिसका समूह ने अनुपालन नहीं किया और निवेशकों को 20,000 करोड़ रपये का रिफंड नहीं किया। ‘‘आप हमसे क्षमा याचना कर रहे हैं लेकिन आप हमारे आदेश का अनुपालन नहीं करते हैं। आप कहते हो भाड़ में जाओ। अब आप यहां हाथ जोड़कर क्षमा याचना कर रहे हैं, हम क्या कर सकते हैं।’’ (एजेंसी)

First Published: Tuesday, March 4, 2014, 23:48

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