Last Updated: Thursday, January 16, 2014, 22:24

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने करीब 200 कोयला खदानों के आवंटन निरस्त करने के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली। न्यायालय ने 16 महीने से अधिक समय तक सुनवाई के बाद कहा कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जाएगा। सुनवाई के दौरान प्राकृतिक संसाधनों को निजी कंपनियों को सौंपने के केन्द्र सरकार के निर्णय की तीखी आलोचना हुई।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कोयला खदानों के आबंटन में कथित अनियमितताओं पर गौर करने के लिये 14 सितंबर, 2012 को सहमति दी थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि कुछ कोयला खदानों के आबंटन रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की गयी है। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने कोयला खदानों के आबंटन से जुड़े सात राज्यों और खनन कंपनियों सहित सभी पक्षों को सुना।
निजी कंपनियों का तर्क था कि शीर्ष अदालत के किसी भी आदेश का भावी प्रभाव होना चाहिए और एक बार में ही सारे आबंटन निरस्त नहीं किये जाने चाहिए। कंपनियों का तर्क था कि न्यायालय को हर मामले का उसके आधार पर ही फैसला करना चाहिए।
एसोसिएशन ऑफ स्पांज आयरन मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी थी कि जहां तकि आबंटन की व्यवस्था का सवाल है तो इसके खिलाफ कोई भी सफलता मिलने की स्थिति में ये भावी प्रभाव से लागू किया जा सकता है जहां लोगों ने यह मानकर काम किया है कि मशीनरी ने कानून के अनुसार ही काम किया है।
उनका यह भी तर्क था कि यदि आबंटन में किसी प्रकार की अनियमितता हुई है तो यह हर मामले के तथ्यों पर और अनियमितता की डिग्री पर निर्भर करनी चाहिए। न्यायालय इन आबंटनों को रद्द करने के लिये पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एन गोपालस्वामी, पूर्व नौसेनाध्यक्ष रामदास और पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियन तथा वकील मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। (एजेंसी)
First Published: Thursday, January 16, 2014, 22:18