Last Updated: Wednesday, December 11, 2013, 20:05
नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने दो व्यस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक रिश्ते को अपराध करार दिया है। न्यायालय द्वारा बुधवार को सुनाए गए फैसले से समलैंगिक, उभयलिंगी और किन्नर (एलजीबीटी) समुदाय को बड़ा झटका लगा है। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2009 में दिए गए फैसले के विपरीत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को बदलने की कोई गुंजाइश नहीं है।
धारा 377 के तहत दो व्यस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध माना गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को इस धारा की वैधानिकता का समर्थन किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 में अपने फैसले में धारा 377 के तहत के समलैगिक रिश्ते को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।
इधर केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि यह सर्वोच्च न्यायालय का विशेषाधिकार है कि वह कानून की वैधता और वैधानिकता का फैसला करे। सरकार सर्वोच्च न्यायालय की राय का सम्मान करेगी। उन्होंने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग किया है। हम अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करेंगे। समलैंगिक कार्यकर्ता अशोक राव कवि ने कहा कि इस फैसले से हम एक पायदान पीछे चले गए हैं। हम सिर्फ समाज में विस्तृत अधिकार की मांग कर रहे हैं। यह सिर्फ समलैंगिकों का पक्ष है। न्यायालय ने धारा 377 पर मार्च 2012 में हुई सुनवाई को सुरक्षित रखा था और 21 महीने बाद यह फैसला आया है।
कार्यकर्ता सोहिनी घोष ने कहा कि यह एलजीबीटी समुदाय के खिलाफ न सिर्फ धोखा है, बल्कि यह संविधान के मूल्यों के साथ भी धोखा है। हम सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि यह लड़ाई जारी रहेगी और हम कड़वे अंत तक लड़ाई जारी रखेंगे। हमसफर ट्रस्ट के पल्लव पटनकर ने कहा कि यह फैसला इस समुदाय के लिए बड़ा झटका है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह मामला संसद के पास रखा है, सर्वोच्च न्यायालय में यह मामला इसलिए भेजा गया था क्योंकि संसद ने समलैंगिकता के मसले पर चर्चा से इंकार कर दिया था। इस मसले पर ध्यान देना जरूरी है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, December 11, 2013, 20:05