Last Updated: Saturday, November 9, 2013, 23:17

नई दिल्ली : केन्द्र और केन्द्रीय जांच ब्यूरो को शनिवार को उस समय बड़ी राहत मिली जब उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को ‘असंवैधानिक’ घोषित करने वाले गौहाटी उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। न्यायालय ने कहा कि ‘सनसनीखेज मामलों’ के अभियुक्तों ने इस निर्णय के आधार पर आपराधिक कार्यवाही रोकने का अनुरोध किया है।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की याचिका पर यह राहत दी। न्यायाधीशों ने प्रधान न्यायाधीश के निवास पर इस मामले की सुनवाई की।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘इस बीच, गौहाटी उच्च न्यायालय के 6 नवंबर, 2013 के फैसले और आदेश के अमल पर रोक रहेगी। न्यायाधीशों ने डीएसपीई कानून के तहत सीबीआई के गठन की वैधानिकता को उच्च न्यायालय में चुनौती देने वाले नवेन्द्र कुमार की प्रारंभिक आपत्तियां ठुकराते हुये उन्हें नोटिस जारी किया। नवेन्द्र कुमार की आपत्ति थी कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग याचिका दायर करने के लिये अधिकृत नहीं है क्योंकि वह उच्च न्यायालय में पक्षकार नहीं था।
न्यायाधीशों ने कहा कि नवेन्द्र कुमार अपने जवाब में इन आपत्तियों को उठा सकते हैं। नवेन्द्र कुमार को दो सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना है। नवेन्द्र कुमार के वकील एल एस चौधरी ने न्यायालय में नोटिस स्वीकार किया। नवेन्द्र कुमार के जवाब के बाद केन्द्र अपना जवाब दाखिल करेगा। इस मामले में अब 6 दिसंबर को आगे सुनवाई होगी।
न्यायालय ने कुमार के वकील के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि केन्द्र की याचिका एक मिलीभगत याचिका है क्योंकि सीबीआई और गृह मंत्रालय की बजाय इसे कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने दायर किया है जो उच्च न्यायालय में पक्षकार ही नहीं था।
अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती के तर्क का संज्ञान लेते हुये न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ही उचित विभाग है। सीबीआई अलग से अपील दायर करेगी। हम कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की अपील सरसरी तौर ही खारिज नहीं कर सकते हैं।’’
अटार्नी जनरल का कहना था कि सीबीआई और गृह मंत्रालय अलग से अपील दाखिल करेंगे। वाहनवती ने उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाते हुये कहा कि यह फैसला गलत सवालों पर और अवधारणा पर आधारित था जिसकी वजल से गलत निष्कर्ष निकला।
न्यायाधीशों ने कुमार के वकील से कहा, ‘‘आपने उच्च न्यायालय में सही प्रतिवादियों को पक्षकार नहीं बनाया।’’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमने अखबारों में पढ़ा कि अनेक लोग इस फैसले के आधार पर मुकदमे की कार्यवाही पर रोक लगाने का अनुरोध कर रहे हैं। हमें रोक :उच्च न्यायालय के आदेश पर: लगानी ही होगी। आपने पढ़ा है कि दो सनसनीखेज मामलों के अभियुक्तों ने मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगाने का अनुरोध किया है।’’
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘आप अपनी आपत्तियां दाखिल कीजिये। हम सारी चीजों पर विचार करेंगे। नोटिस का मतलब यह नहीं है कि हम आपकी दलील अस्वीकार कर रहे हैं। हम दूसरे सभी मामलों को लेकर चिंतित हैं।’’ करीब दस मिनट की सुनवाई के बाद न्यायालय ने उच्च न्यायालय के 6 नवंबर के उस फैसले पर रोक लगा दी जिसने देश में तमाम मामलों की जांच करने और हजारों मामलों में मुकदमे की कार्यवाही को लेकर जांच एजेन्सी को लगभग पंगु बना दिया था।
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने कहा कि यह बेहद गंभीर मसला है जिसका सरोकार कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग से है और केन्द्रीय जांच ब्यूरो अलग से अपील दायर करेगा। उनका कहना था कि उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने गलत सवाल निर्धारित किये और गलत अवधारणा पर कार्यवाही की और फिर वह गलत निष्कर्ष पर पहुंच गयी।
उन्होंने इस निष्कर्ष पर भी सवाल किया कि सीबीआई का गठन कानून के तहत नहीं किया गया है और केन्द्र सरकार ने एक शासकीय आदेश के तहत इसका सृजन किया है। अटार्नी जनरल ने उच्च न्यायालय के इस निष्कर्ष पर सवाल उठाया कि कानून के तहत सीबीआई का गठन नहीं किया गया था और इसका सृजन को एक शासकीय आदेश के तहत किया गया है।
अटार्नी जनरल ने 1963 का प्रस्ताव निरस्त करने संबंधी उच्च न्यायालय के निष्कर्ष की ओर भी न्यायालय का ध्यान आकषिर्त किया और कहा कि इसमें डीएसपीई कानून की धारा 2 का जिक्र ही नहीं है।
इस पर न्यायाधीशों ने अटार्नी जनरल से कहा, ‘‘इस प्रस्ताव के बाद कोई कार्रवाई नहीं की गयी।’’ अटार्नी जनरल ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा बताये गये कारण अस्वीकार्य हैं। यह तो प्रशासनिक कानून के सिद्धांत की समझ के खिलाफ है।
न्यायालय ने कहा कि केन्द्र की अपील पर विचार किया जायेगा। हम इसका अध्ययन करेंगे। अटार्नी जनरल ने कहा कि उच्च न्यायालय का यह तर्क बेतुका है कि डीएसपीई कानून सीबीआई पर लागू नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि अदालतों में हजारों मुकदमे लंबित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे बताया गया है कि नौ हजार मुकदमे लंबित हैं और सीबीआई में 6000 लोग काम करते हैं। यह फैसला 6 नवंबर को आया और इसकी प्रति हमें कल ही मिली है।
इससे पहले दिन भर केन्द्र सरकार की ओर से गतिविधियां तेज रहीं। केन्द्र ने पहले सुबह शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में अपील दायर की और प्रधान न्यायाधीश के निवास पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया। इस मामले में पहले से ही कैविएट दाखिल करने वाले नवेन्द्र कुमार भी इसकी जानकारी मिलते ही प्रधान न्यायाधीश के निवास पहुंच गये। (एजेंसी)
First Published: Saturday, November 9, 2013, 17:03