Last Updated: Monday, May 26, 2014, 21:53
नई दिल्ली : नरेन्द्र मोदी की केबिनेट में सुषमा स्वराज एकमात्र वरिष्ठ भाजपा नेता हैं, जिन्हें गुजरात के दिग्गज नेता के आसपास घूमती पार्टी के भीतर विरोध के एक मुखर स्वर के तौर पर देखा जाता है। कैबिनेट में उन्हें शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकार किया गया और पार्टी में उनकी मजबूत जगह की वजह से मोदी को उनकी अहमियत का अंदाजा है।
स्वराज को लंबे अर्से से भाजपा के नेतृत्व का माद्दा रखने वाले दूसरी पीढ़ी के सबसे चमकदार राजनेताओं में गिना जाता रहा है, लेकिन निवर्तमान लोकसभा में विपक्ष की नेता अपने संरक्षक लालकृष्ण आडवाणी सहित कई अन्य पार्टी नेताओं की तरह मोदी के जबर्दस्त उभार के चलते हाशिए पर खिसकते नजर आए।
बहुत से लोग मोदी के काफिले का हिस्सा बन गए और कुछ और मोदी का कद बढ़ने की कवायद को खामोशी से देखते रहे, लेकिन 62 वर्षीय सुषमा एक चौकस और कई बार विरोधी स्वर की अपनी खनक बनाए रहीं।
चाहे वह जून 2013 में मोदी को पार्टी की चुनाव प्रचार इकाई का प्रमुख बनाने का मुद्दा हो या फिर उन्हें पिछले वर्ष सितंबर में भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की बात, उन्होंने अपना विरोध जाहिर किया, लेकिन उस तरह सार्वजनिक तौर पर नहीं, जैसा उनके संरक्षक आडवाणी ने किया।
लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी की शानदार जीत और विदिशा से उनकी खुद की जीत ने उनके सारे मलाल धो डाले। तभी तो अब वह मोदी के ‘‘कुशल नेतृत्व’’ की बात करती हैं और सरकार के गठन को लेकर शीर्ष नेताओं के साथ उनसे एक दो बार मिली भी हैं।
प्रभावी वक्ता, जो हिंदी अंग्रेजी दोनो भाषाओं में पूरे अधिकार से बोल पाती हैं, एक आरएसएस कार्यकर्ता की पुत्री हैं और स्वदेशी के प्रति उनका प्यार तथा इससे जुड़े अन्य मुद्दों पर उनकी मजबूत पकड़ के चलते उन्हें आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व का आशीर्वाद मिला।
सुषमा ने 2004 के लोकसभा चुनाव के समय कहा था कि अगर इटली में जन्मी सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो वह अपना सर मुंडवा लेंगी। अपने इस भावनात्मक रूख से उन्हें राष्ट्रवादी कट्टरपंथियों की वाहवाही मिली, लेकिन इसकी नौबत नहीं आई क्योंकि सोनिया ने प्रधानमंत्री पद लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने 1999 में बेलारी से गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन 56000 वोट से हार गइ’।
उन्होंने 1970 के दशक में एबीवीपी के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की और जनता पार्टी आंदोलन में भाग लेने के बाद आपातकाल के खिलाफ अभियान चलाया। 1977 से 1982 के बीच अंबाला छावनी इलाके से हरियाणा विधानसभा की सदस्य रहीं सुषमा ने जुलाई 1977 में हरियाणा में देवी लाल के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार में केबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ली।
वह 27 बरस की उम्र में हरियाणा में जनता पार्टी की राज्य इकाई की अध्यक्ष बनीं और 1987 से 90 के दौरान भाजपा-लोकदल गठबंधन सरकार में शिक्षा मंत्री बनीं।
उसके कुछ समय बाद वह राज्यसभा के लिए चुनी गइ’ और 1996 में दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से 11वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित होने तक वह उच्च सदन की सदस्य बनी रहीं।
सुषमा ने 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 दिन की सरकार में केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री का कामकाज संभाला। इतने छोटे से कार्यकाल में भी उन्हें लोकसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू करने का श्रेय जाता है।
दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से दूसरी बार 12वीं लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद वह दूसरी वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं और उन्हें दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया।
अपने कार्यकाल के दौरान सुषमा ने ही फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा दिया, जिससे फिल्म उद्योग बैंक से वित्तपोषण के योग्य हो सका। पार्टी नेतृत्व के कहने पर वह अक्तूबर 1998 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल छोड़ कर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वह जनवरी 2003 से मई 2004 तक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों की मंत्री रहीं।
(एजेंसी)
First Published: Monday, May 26, 2014, 21:53