Last Updated: Monday, May 26, 2014, 22:45
नई दिल्ली : अक्सर ‘साध्वी’ के विशेषण के साथ पुकारी जाने वाली तेजतर्रार नेता उमा भारती की शख्सियत ऐसी है कि वह भाजपा में रहीं या नही रहीं, लेकिन खबरों में सदा रहीं।
यह दूसरा मौका है जब उमा भारती राजग सरकार में केन्द्रीय मंत्री बनाई गई हैं।
ग्वालियर की विजय राजे सिंधिया के प्रश्रय में राजनीति में आगे बढ़ीं 55 वर्षीय भारती ने बहुत छोटी उम्र में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था।
1984 में वह अपने पहले चुनावी समर में उतरीं और लोकसभा का चुनाव लड़ा।
उन्होंने 1989 में अपनी पहली चुनावी जीत के साथ लोकसभा तक रास्ता बनाया। वह मध्य प्रदेश में खजुराहो सीट से निचले सदन तक पहुंचीं। वह 1991, 1996 और 1998 में फिर लोकसभा के लिए चुनी गईं।
उमा ने 1999 में चुनाव क्षेत्र बदले और भोपाल सीट से विजयी हुइ’। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्होंने राज्य मंत्री और कैबिनेट मंत्री के तौर पर कई विभागों का कामकाज संभाला। इसमें मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा मामले और खेल विभाग शामिल हैं।
उन्होंने इस बार उत्तर प्रदेश के झांसी संसदीय क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 2 लाख से ज्यादा मतों से हराकर लोकसभा में जगह बनाई। रामजन्मभूमि आंदोलन में सक्रियता से शामिल रहीं उमा का नाम लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में भी शामिल था।
उमा की वाणी में ओज है और उन्हें उनके तीर से चुभते भाषणों के लिए जाना जाता है। मंदिर आंदोलन के साथ उनका जुड़ाव उन्हें पार्टी के वयोवृद्ध नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ भाजपा की अग्रिम पंक्ति में ले आया।
उन्हें मध्य प्रदेश में 2003 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नियुक्त किया गया और अपने प्रचंड प्रचार अभियान और विकास के नारे के सहारे उमा राज्य विधानसभा में पार्टी को तीन चौथाई बहुमत दिलाने में कामयाब रहीं।
अगस्त 2004 में जब उमा को सत्ता में आए मात्र एक वर्ष हुआ था 1994 के हुबली दंगों के सिलसिले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया और उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देने का फैसला किया। नवंबर 2004 में यहां भाजपा मुख्यालय में एक बैठक के दौरान आडवाणी के साथ उनकी बाताबाती हो गई और यही पार्टी से उनके निष्कासन की वजह बनी। हालांकि कुछ महीने बाद उनका निलंबन रद्द कर दिया गया और राजनीतिक हलकों में चर्चा रही कि आरएसएस के इशारे पर ऐसा किया गया है।
हालांकि इसके बाद भी उमा ने भाजपा आला कमान की अवहेलना करना बंद नहीं किया और इस बात पर अड़ गइ’ कि उन्हें शिवराज सिंह चौहान के स्थान पर मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाए। इस घटनाक्रम के बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।
इसके बाद भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के नाम से अपना राजनीतिक दल बनाया। उनका कहना था कि उनकी पार्टी आरएसएस की विचारधारा की हिमायती है, लेकिन पार्टी को ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं हो पाई। जून 2011 में भाजपा ने उन्हें फिर से अपना लिया और उन्हें 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने का दायित्व सौंपा गया। (एजेंसी)
First Published: Monday, May 26, 2014, 22:45