Last Updated: Sunday, December 15, 2013, 17:39

जोहांसबर्ग : भारत को विदेशी सरजमीं पर टेस्ट मैच खेले हुए करीब दो साल हो चुके हैं और अब टीम बुधवार से वांडर्स में दक्षिण अफ्रीका से भिड़ने के लिए तैयार हो रही है और कोच डंकन फ्लेचर के लिये यह कड़ी चुनौती होगी क्योंकि वह विदेशों में 0-8 से मिली करारी शिकस्त के परिणाम के बाद भी टीम के साथ लंबा सफर तय कर चुके हैं। भारत ने विदेशी सरजमीं पर अंतिम मैच जनवरी 2012 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में खेला था। विदेश में लंबे समय तक मिली हार का यह अंतिम मैच था जिसमें इंग्लैंड (0-4) के बाद उसे आस्ट्रेलिया से लगातार चार टेस्ट में पराजय मिली थी।
विश्व क्रिकेट में इतने कोच मौजूद नहीं हैं जो विदेशी हालात में 0-8 से मिली हार के बाद टीम के साथ बने रहे हों, लेकिन फ्लेचर किसी तरह कोच बने ही रहे। अब यह देखना बहुत आसान है कि टीम हमेशा उनका समर्थन क्यों करती है। वह सीनियर और अनुभवी खिलाड़ियों की अनुपस्थिति में इन युवाओं के लिये ‘पिता तुल्य’ हैं।
चेतेश्वर पुजारा ने बेनोनी में टीम के अभ्यास सत्र से पहले कहा, ‘टीम में युवाओं के साथ संवाद बहुत आसान है। निश्चित रूप से फ्लेचर से हर वक्त बात की जा सकती है। मैं हमेशा उनके पास जाकर बात कर सकता हूं कि वह मेरी बल्लेबाजी के बारे में क्या सोचते हैं या मुझे क्या परेशानी हो रही है।’
सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे क्रिकेटरों के अनुभव और काबिलियत को देखते हुए वे खुद में एक पूर्ण ‘कोचिंग पुस्तिका’ हैं। यह सोचना ही मुश्किल है कि यह तिकड़ी फ्लेचर से अपनी समस्याओं के बारे में बात करती होगी, लेकिन इन युवा खिलाड़ियों के लिये यह जरूरी है। पिछले दो साल में काफी कुछ बदल गया है।
तेंदुलकर, द्रविड़ और लक्ष्मण अब क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं। यहां तक कि वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर भी भारत के लिये किसी प्रारूप में पारी का आगाज नहीं करते जबकि हरभजन सिंह अंतिम एकादश से मीलों दूर हैं। जहीर हालांकि अब भी टीम के साथ हैं। लेकिन अब यह कहा जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट का बदलाव का दौर लगभग खत्म हो चुका है। 0-8 से मिली शिकस्त के बाद यह हालांकि काफी दर्दभरी प्रक्रिया रही।
भारत 201-12 में इंग्लैंड से घरेलू मैदान पर 1-2 से हार गया, जो काफी शर्मनाक शिकस्त थी। लेकिन उसने उबरते हुए आस्ट्रेलिया को 4-0 से पराजित किया। उन्होंने न्यूजीलैंड और वेस्टइंडीज को मात दी, इन जीतों पर कभी कोई शक नहीं था। अगर बीते एक साल के 12 टेस्ट को प्रगति के तौर पर गिना जाये तो यह इन युवाओं की उर्जा से ही हुआ है, जिससे भारतीय टीम को एक नयी शक्ल दी है।
पुजारा और विराट कोहली बल्लेबाजी की अगुवाई करते हैं। रोहित शर्मा धीरे धीरे बल्लेबाजी क्रम में अपना महत्व महसूस कर रहे हैं जबकि शिखर धवन और मुरली विजय नये सलामी बल्लेबाज हैं। आर अश्विन और प्रज्ञान ओझा इस अध्याय के स्पिन जोड़ीदार हैं जबकि रविंद्र जडेजा ताश के पत्ते के ‘जोकर’ की तरह हैं।
तेज गेंदबाजों लगातार अंतिम एकादश में जगह बना रहे है। इन खिलाड़ियों के लिये आत्मविश्वास हासिल करना काफी अहम है। यह देखते हुए कि एक साल पहले उन्हें व्यक्तिगत काबिलियत के हिसाब से रखा गया है लेकिन अब कहा जा सकता है कि यह इस बदलाव की प्रक्रिया का अहम हिस्सा था। इस मोड़ पर फ्लेचर को आगे आने की जरूरत है।
अश्विन ने दक्षिण अफ्रीका के ख्रिलााफ दो टेस्ट मैचों की श्रृंखला की तैयारी करते हुए कहा, ‘सहयोगी स्टाफ पर कोई भी असफलता नहीं मढ़ी जा सकती। उन्होंने कहा, ‘टीम को यह कहने के बजाय कि कोच का रिकार्ड अच्छा नहीं है और ऐसा है या वैसा है, उन्हें असफलता ‘एक समान’ रूप से स्वीकार करनी होगी। हमारा रिकॉर्ड शानदार नहीं है।
आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड का हमारा दौरा काफी खराब रहा था लेकिन उनका (फ्लेचर) काम हमेशा ही सर्वश्रेष्ठ रहा है भले ही अभ्यास का इंतजाम करना हो या खिलाड़ी क्या चाहते हैं या फिर उनके पास जाकर बात करना। वह टीम में अंतर पैदा करना चाहते हैं। अश्विन ने कहा, दो चीजे हैं, अंतर पैदा करने की इच्छा रखना और सचमुच में अंतर पैदा करना। अंतर पैदा करने के दौरान खिलाड़ी को भी एक भूमिका अदा करने की जरूरत होती है। फ्लेचर हमेशा ही वैसा अंतर पैदा करना चाहते हैं जो एक खिलाड़ी चाहता है और यह उसकी इच्छानुसार हो। वह किसी से भी बात करने में झिझकते नहीं हैं। वह किसी से भी उसके गेम में बदलाव करने का नया सुझाव देने की पेशकश करने से शरमाते नहीं हैं। यह हमेशा ही व्यक्तिगत होता है कि वह इसे स्वीकार करे या नहीं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, December 15, 2013, 17:39