Last Updated: Wednesday, April 16, 2014, 19:51

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एन श्रीनिवासन आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पाट फिक्सिंग मामले की जांच में क्लीन चिट मिलने तक भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के मुखिया नहीं रह सकते हैं। सट्टेबाजी और स्पाट फिक्सिंग कांड की जांच करने वाली न्यायमूर्ति मुद्गल समिति की रिपोर्ट में श्रीनिवासन और कुछ खिलाड़ियों सहित 12 अन्य व्यक्तियों के नामों का जिक्र है। न्यायमूर्ति ए के पटनायक की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि इस मामले की जांच करने वाली समिति के आरोपों के प्रति ‘आंख नहीं मूंद सकती’ है और सीलबंद लिफाफे में पेश रिपोर्ट में कुछ प्रमुख खिलाड़ियों के कारण इस प्रकरण को लेकर व्याप्त संदेह दूर करने के लिये इसकी जांच करायी जानी चाहिए।
न्यायाधीशों ने इस मामले की जांच के लिये विशेष जांच दल या केन्द्रीय जांच ब्यूरो को आदेश देने के बारे में कुछ संकोच करते हुये कहा कि बोर्ड की संस्थागत स्वायत्तता बनाये रखना जरूरी है और बेहतर होगा कि बीसीसीआई द्वारा गठित समिति सारे मामले की जांच करे।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘आरोपों के स्वरूप को देखते हुये हम इससे अपनी आंखे नहीं मूंद सकते हैं और जब तक यह पूरी हो, श्रीनिवासन बीसीसीआई में नहीं आ सकते।’ न्यायालय ने कहा, ‘13 व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों का सत्यापन और जांच आवश्यक हैं। श्रीनिवासन का नाम सबसे अंत में आता है। बहुत खास क्रिकेटरों के नाम हैं लेकिन हम इस समय उनके नाम नहीं लेना चाहते।’ न्यायालय ने कहा कि वह बोर्ड की संस्थागत स्वायत्तता बनाये रखना चाहता है और पुलिस या सीबीआई से जांच का आदेश देकर इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘हम उनके खिलाफ सीबीआई, एसआईटी या पुलिस से जांच नहीं कराना चाहते लेकिन यदि हमें बाध्य किया गया तो हम ऐसा करेंगे। आरोपों की जांच कौन करेगा। इस पर सोचिये और विचार करके अगली तारीख पर इसका जवाब दीजिये।’
न्यायालय ने कहा कि वह जांच एजेन्सियों के साथ गोपनीय रिपोर्ट साझा नहीं कर सकता है क्योंकि ऐसा करने पर क्रिकेट खिलाड़ियों के नाम सार्वजनिक हो जायेंगे और मीडिया कीचड़ उछालना शुरू कर देगा। न्यायमूर्ति मुद्गल समिति की सीलबंद लिफाफे में पेश रिपोर्ट का जिक्र करते हुये न्यायाधीशों ने कहा, ‘यह (रिपोर्ट) कहती है कि ये सारे आरोप उनके (श्रीनिवासन) के संज्ञान में लाये गये थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। इसका मतलब हुआ कि वह आरोपों के बारे में जानते थे और उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।’ न्यायाधीशों ने सवाल किया, ‘हमें किसे यह रिपोर्ट देनी चाहिए।? क्या हम उसे बीसीसीआई और श्रीनिवासन को दें या हम जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करें। हमे बीसीसीआई में भरोसा है। उसे ही जांच समिति नियुक्त करनी चाहिए लेकिन इसमें निष्ठा वाले व्यक्ति होने चाहिए। हम विशेष जांच दल, सीबीआई या पुलिस जांच नहीं चाहते।’ बोर्ड और श्रीनिवासन ने किसी बाहरी एजेन्सी से जांच का जोरदार विरोध किया लेकिन बिहार क्रिकेट एसोसिएशन विशेष जांच दल का पक्षधर है। बोर्ड का दावा है कि नया प्रबंधन के तहत वह अपने पूर्व मुखिया के प्रभाव के बगैर ही काम कर रहा है।
न्यायालय ने कहा कि उसकी चिंता क्रिकेट के बारे में है कि श्रीनिवासन के स्थान पर नयी अंतरिम व्यवस्था की गयी ताकि आईपीएल की छवि धूमिल नहीं हो और वह सफल रहे। कोर्ट ने सुंदर रमण को आईपीएल-7 के मुख्य संचालक अधिकारी के रूप में काम करने की अनुमति भी दे दी।
न्यायालय ने आईपीएल के लिये शीर्ष अदालत द्वारा बीसीसीआई के अंतरिम अध्यक्ष के रूप में नियुक्त वरिष्ठ खिलाड़ी सुनील गावस्कर के पत्र के बाद सुंदर रमण को पद पर काम करते रहने की अनुमति दी। गावस्कर ने लिखा कि न्यायालय को रमण के बारे में फैसला लेना चाहिए। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, April 16, 2014, 12:47