गुजरात दंगे : नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत, कोर्ट ने SIT की क्लीन चिट पर मुहर लगाई

गुजरात दंगे : नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत, कोर्ट ने SIT की क्लीन चिट पर मुहर लगाई

गुजरात दंगे : नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत, कोर्ट ने SIT की क्लीन चिट पर मुहर लगाईज़ी मीडिया ब्यूरो

अहमदाबाद: वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के एक मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अहमदाबाद कोर्ट से गुरुवार को बड़ी राहत मिली है। दंगों की पीड़ित जाकिया जाफरी ने एसआईटी की रिपोर्ट को चुनौती दी थी जिसे अहमदबाद कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट बरकरार रखी जाए। कोर्ट का यह फैसला आते ही बीजेपी में जश्न का माहौल छा गया।

नरेंद्र मोदी को यह राहत गुलबर्गा सोसायटी के दंगों में मिली है। यानी अब यह साफ हो गया है कि नरेंद्र मोदी पर दंगे का केस नहीं चलेगा। इस मामले में 2 दिसंबर को सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत देते हुए एक मेट्रोपोलिटन अदालत ने 2002 के गुजरात दंगों के मामले में विशेष जांच टीम द्वारा उन्हें और अन्य को क्लिन चिट दिए जाने के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। जकिया कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं।

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट बीजे गणत्र ने खुली अदालत में फैसला सुनाते हुए जकिया के वकील मिहिर देसाई से कहा कि उनकी याचिका खारिज की जाती है और उन्हें ऊपरी अदालत में जाने की स्वतंत्रता है। जकिया के पति उन 68 लोगों में शामिल थे जो गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में हुये अग्निकांड के बाद भड़के दंगों के दौरान यहां गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में मारे गए थे।

जकिया (74) ने 15 अप्रैल को एक विरोध याचिका दायर कर उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त एसआईटी की मामला बंद करने को लेकर दाखिल रिपोर्ट पर ऐतराज जताया था। रिपोर्ट में नरसंहार की साजिश में मोदी की सहअपराधिता को खारिज कर दिया गया था। अदालत में मौजूद याचिकाकर्ता उस वक्त रो पड़ी जब फैसला सुनाया गया और कहा कि वह एक महीने में इसके खिलाफ उपरी अदालत में अपील करेगी। जकिया ने अपनी याचिका में एसआईटी रिपोर्ट खारिज करने और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी तथा अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने के लिए अदालत से आदेश देने का अनुरोध किया था। जकिया ने मोदी, उनके मंत्रमंडलीय सहयोगियों, शीर्ष पुलिस अधिकारी और भाजपा पदाधिकारियों सहित 63 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने इन लोगों पर दंगों में व्यापक साजिश रचने का आरोप लगाया था जिसमें 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे। इनमें ज्यादातर मुसलमान थे। जमुआर ने कहा कि शिकायतकर्ता के पास अदालत के आदेश के खिलाफ जिला जज या उच्च न्यायालय के पास जाने के अधिकार हैं।

शीर्ष न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन के नेतृत्व वाली एसआईटी द्वारा जकिया की श्किायत की जांच करने का आदेश दिया था। शिकायत की जांच के बाद एसआईटी ने उच्चतम न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसने मोदी सहित कई लोगों से मार्च 2010 में नौ घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की। उच्चतम न्यायालय ने रिपोर्ट पर गौर करते हुए न्याय मित्र राजू रामचंद्रन को स्वतंत्र रूप से एसआईटी की जांचों का सत्यापन करने को कहा था।

रामचंद्रन ने भी उच्चतम न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी और जकिया के मुताबिक उसके पास मोदी एवं अन्य के खिलाफ मुकदमे के लिए पर्याप्त आधार है। दोनों रिपोर्टों पर विचार करते हुए शीर्ष न्यायालय ने 12 सितंबर 2011 को निर्देश दिया था कि एसआईटी आखिरी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन अदालत के पास जमा करे जिसके साथ जांच के दौरान जुटाई सारी सामग्री संलग्न हो। इस बीच, आज के फैसले पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए एसआईटी प्रमुख राघवन ने कहा कि उन्हें अब खुद के दोषमुक्त होने और कामकाज को लेकर संतोष महसूस हो रहा है। राघवन ने कहा कि वह इस बात को लेकर बहुत संतुष्ट हैं कि उनकी कड़ी मेहनत को अहमदाबाद अदालत ने कायम रखा। उन्होंने कहा कि यह जबरदस्त प्रतिकूल परिस्थितियों में अत्यधिक मुश्किल कार्य था। मैं उन प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में बात नहीं करना चाहता। आप जानते हैं कि वह क्या है। हमने एक पूर्ण जांच की। मैं इस बात को लेकर खुश हूं कि अदालत ने हमारे काम पर मुहर लगा दी। राघवन ने पूर्वाग्रह के आरोप पर कहा कि मैं गैर राजनीतिक हूं, मैं सीबीआई का पूर्व निदेशक हूं। मेरा कोई राजनीतिक विचार नहीं है। मैंने इसे एसआईटी के नजरिए से देखा। उच्चतम न्यायालय ने एक काम सौंपा था जिसे हमने कर दिया। पांच महीने तक लगभग रोजाना अदालत में हुई बहस के दौरान एसआईटी के वकील आरएस जमुआर ने जकिया की याचिका खारिज करने की मांग की थी क्योंकि जांच के दौरान कोई सीधा या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं पाया गया, जो प्रथम दृष्टया मोदी और अन्य को दंगों के पीछे मौजूद साजिश से जोड़ सके।

जकिया के वकील मिहिर देसाई ने कहा कि एसआईटी ने स्वतंत्र जांच एजेंसी के तौर पर काम करने की बजाय शक्तिशाली लोगों को बचाने का काम किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि एसआईटी ने अदालत को गुमराह किया और जानबूझ कर शीर्ष न्यायालय के आदेश के साथ खिलवाड़ किया।

First Published: Thursday, December 26, 2013, 16:29

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