Last Updated: Friday, January 31, 2014, 10:14
ज़ी मीडिया ब्यूरो नई दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अब खाप पंचायतों को लेकर नरम रुख दिखाया है। तुगलकी फरमान देनी वाली खाप पंचायतों को प्रतिबंध करने की मांग पर केजरीवाल ने कहा कि गांवों की अवैध खाप पंचायतों को बैन करने की कोई जरूरत नहीं है।
केजरीवाल को खाप पंचायतें सांस्कृतिक संगठन लगती हैं, जिस वजह से वो उन्हें बैन नहीं करना चाहते। गौर हो कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित कामयाबी के बाद पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़ने की तैयारी कर रही है। `आम आदमी पार्टी` भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनावी मैदान में आना चाहती हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी की मुहिम को शहरी क्षेत्रों के लोगों ने भरपूर समर्थन भी दिया।
वहीं, ज्यादातर शहरी भारतीयों को लगता है कि केजरीवाल प्रगतिशील सामाजिक राजनीति को आगे बढ़ाएंगे, जिसमें महिलाओं का सशक्तिकरण एक अहम हिस्सा होगा। लेकिन खाप पंचायत के मुद्दे पर लिया गया केजरीवाल द्वारा ये फैसला उनको भारी पड़ सकता है। केजरीवाल उस संस्था के साथ खड़ें है जिसमें सारे लोग बिना किसी निर्वाचन प्रक्रिया के पहुंचते हैं। खाप पंचायतों के लिए प्रेम विवाह अपराध है। यह अजीब विरोधाभास है कि देश के कई प्रगतिशील महिला ग्रुप खाप पंचायत को खत्म करने के पक्ष में हैं, वहीं केजरीवाल इस पर सांस्कृतिक चादर डाल रहे हैं।
खाप पंचायत महिलाओं को वेस्टर्न कपड़े पहनने से रोकती है। खाप लड़कियों को मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं करने का भी फरमान जारी करती है। कुछ खाप पंचायतें तो विचित्र तर्क देती हैं। रेप को रोकने के लिए खाप पंचायत नायाब नुस्खा सुझाते हुए कहती है कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से 16 कर देनी चाहिए।
केजरीवाल ने कहा कि खाप पंचायत को बैन करने का सवाल ही नहीं उठता। खाप पंचायत लोगों का समूह है। इसमें लोग एक साथ आते हैं। देश में लोगों का एक साथ आना गैरकानूनी नहीं है। अगर कोई गलत और अवैध निर्णय लेती है तो उसे कानून के मुताबिक सजा मिलनी चाहिए। खाप पंचायतों का गांवों में जबरदस्त असर है। ये पंचायतें न केवल उदार, आजादख्याल और विवेकशील जीवन शैली को चुनौती देती हैं बल्कि कानून को भी ये ठेंगे पर रखती हैं। इन पंचायतों को चुनौती देने से देश की सियासी पार्टियां बचती हैं।
केजरीवाल की राजनीति में नागरिकों को बुनियादी सुख-सुविधाएं मुहैया कराने की बातें तो शामिल हैं लेकिन कई मामलों अभी भी दुविधा की स्थिति है। आम आदमी पार्टी महिलाओं के हक और उनकी आजादी के बारे में किस हद तक सोचती है, खाप पंचायत के साथ खड़े होने के बाद दुविधा और बढ़ गई है।
First Published: Friday, January 31, 2014, 10:14