Last Updated: Sunday, February 2, 2014, 11:52
नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1996 में अपने सरकारी रिवॉल्वर से एक व्यक्ति पर गोली चलाने में मामले में एक हेड कांस्टेबल को मिली तीन साल की सजा बरकरार रखी है। घटना के समय आरोपी अपने अपराधी सहयोगियों के साथ था। निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने आरोपी लियाकत अली को राहत देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उसकी अपराधियों के साथ सीधी सांठगांठ थी। अदालत ने कांस्टेबल से अपनी सजा पूरी करने के लिए कल निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा है। निचली अदालत ने 1999 में लियाकत को हत्या की कोशिश के लिए तीन साल कैद की सजा सुनायी और 4,000 रपए का जुर्माना भरने को कहा था।
पीठ ने कहा, अपीलकर्ता (लियाकत) दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल था और उसे आत्मरक्षा के लिए एक सरकारी रिवॉल्वर और 12 कारतूस मिले हुए थे। लेकिन जिस उद्देश्य के लिए उसे हथियार मिला था उसके लिए इस्तेमाल करने की बजाए उसने अपराधियों से सांठगांठ कर ली और उस जगह गया जहां दो समूहों में पैसों के बंटवारे को लेकर झगड़ा चल रहा था। पीठ ने कहा, उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ सीधी सांठगांठ थी और उसने दूसरे समूह के साथ लड़ाई में उनकी मदद की। अपराधियों के साथ सीधी मिलीभगत की वजह से अपीलकर्ता माफी का हकदार नहीं है। लियाकत को 12 मई, 1996 को पूर्वी दिल्ली के एक रेलवे फाटक के पास शिकायतकर्ता संजय पर गोली चलाने का दोषी पाया गया। उसने एक झगड़े के दौरान शिकायतकर्ता पर गोली चलायी। झगड़े में उसके दो सहयोगी शामिल थे जिन्हें निचली अदालत ने बरी कर दिया। (एजेंसी)
First Published: Sunday, February 2, 2014, 11:52