बांग्लादेश में बगावत मामले में 152 सुरक्षाकर्मियों को फांसी की सजा

बांग्लादेश में बगावत मामले में 152 सुरक्षाकर्मियों को फांसी की सजा

बांग्लादेश में बगावत मामले में 152 सुरक्षाकर्मियों को फांसी की सजाढाका : बांग्लादेश की एक अदालत ने वर्ष 2009 की बगावत में 74 लोगों की हत्या के मामले में कुल 152 सुरक्षा कर्मियों को मौत की सजा सुनाई है।

ढाका स्थित मेट्रोपोलिटन सत्र अदालत के न्यायाधीश मोहम्मद अख्तरूजमां ने फैसला सुनाया, ‘‘इन्हें फांसी पर लटकाया जाएगा।’’ इस मामले को दुनिया का सबसे बड़ा आपराधिक मुकदमा माना जा रहा है।

न्यायाधीश ने राजधानी ढाका में खचाखच भरी अदालत में कहा, ‘‘अत्याचार इतने जघन्य थे कि शवों के प्रति भी वाजिब सम्मान नहीं दर्शाया गया।’’ इस मामले के 846 आरोपियों में से 26 आम नागरिक थे। अदालत ने 158 विद्रोही सैनिकों को उम्रकैद और 251 अन्य आरोपियों को 3 से 10 साल तक की कैद की सजा सुनाई।

अदालत ने 242 आरोपियों की नरसंहार में कोई संलिप्तता न मिलने पर उन्हें बरी कर दिया। जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है उनमें बांग्लादेश राइफल्स के पूर्व उप सहायक निदेशक तौहीद अहमद भी शामिल हैं। व्रिदोह के समय वह बागी सुरक्षा बलों की अगुवाई करने में वालों में शामिल थे। बांग्लादेश राइफल्स का नाम अब बॉर्डर गॉर्ड बांग्लादेश (बीजीबी) हो चुका है।

बीजीबी के महानिदेशक मेजर जनरल अजीज अहमद ने सजा पर संतोष प्रकट करते हुए कहा, ‘‘अपने लोगों को खोने वाले परिवारों तथा साथियों को खोने वाले हमारे जैसे लोगों को इंसाफ मिला है।’’ अहमद ने कहा, ‘‘लंबी सुनवाई के बाद 2009 के विद्रोह के षड़यंत्रकारियों को उचित और मिसाल पेश करने वाली सजा दी गई है।’’

मुख्य विपक्ष बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के पूर्व सांसद नसीरूद्दीन अहमद पिंटू और आवामी लीग के नेता व पूर्व बीडीआर सैनिक तोराब अली को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। मुख्य सरकारी वकील अनीसुल हक ने पहले पीटीआई से कहा था, ‘‘आरोपियों, गवाहों और मारे गए लोगों की संख्या के मामले में यह संभवत: विश्व का सबसे बड़ा आपराधिक मुकदमा है।

इसमें यह बात अद्भुत है कि इस मामले की सुनवाई देश के सामान्य कानून के तहत सामान्य मुकदमे की तरह ही की गई।’’
ढाका के तत्कालीन सत्र न्यायाधीश जोहुरूल हक ने 5 जनवरी 2011 को बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) के पूर्व सैनिकों के खिलाफ सुनवाई की प्रक्रिया शुरू की थी।

बगावत के दुष्प्रभाव से उबरने के लिए शुरू किए गए अभियान के तहत बीडीआर का नाम बदलकर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) रख दिया गया था।

विद्रोही सैनिकों ने 25 फरवरी 2009 को राजधानी के केंद्र में स्थित बीडीआर के पिल्खाना मुख्यालय में बगावत की थी जो जल्दी ही बल के देशभर के सेक्टर मुख्यालयों और क्षेत्रीय इकाइयों में फैल गई।

अर्धसैन्य बलों के बागी सैनिकों ने अपनी बंदूकें अपने कमांडरों पर तान दीं और उन्हें या तो नजदीक से गोली मार दी या फिर उन्हें इतना प्रताड़ित किया कि उनकी मौत हो गई। इसके बाद उनके शवों को नालों में छिपा दिया गया।

इन सैनिकों ने यह विरोध प्रदर्शन सैनिकों की उच्च अधिकारियों के साथ होने वाली वाषिर्क बैठक या दरबार के दौरान किया था। उनका पहला शिकार तत्कालीन बीडीआर प्रमुख मेजर जनरल शकील अहमद बने थे।

ये हत्याएं तीन दिन की बगावत के दौरान सिर्फ पिल्खाना में ही हुईं जबकि ढाका के बाहर विद्रोही सैनिकों ने आदेशों को मानने से इंकार कर दिया था और शस्त्रागार की कमान अपने हाथ में ले ली थी। वे अपने सैन्य कमांडरों को अंदर बंद करके खुद बैरकों से बाहर आ गए थे। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, November 5, 2013, 19:57

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