Last Updated: Tuesday, October 22, 2013, 16:08

बीजिंग: चीनी विशेषज्ञों के अनुसार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तीन दिन की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा रक्षा सहयोग संधि पर दस्तखत होने की उम्मीद है जो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच अकसर हो जाने वाली तनातनी से निबटने में ‘दोहरी गारंटी’ होगी।
चाइना इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेंपरी इंटरनेशनल रिलेशन्स में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ ऐंड साउथईस्ट एशियन ऐंड ओशिनियन स्टडीज के निदेशक हू शिशेंग ने कहा कि रक्षा समझौता ‘सीमा संकट नियंत्रित करने में बहुत अहम होगा।’ शिशेंग ने कहा, ‘दोनों राष्ट्रों ने सीमा मुद्दों के प्रबंधन के लिए कुछ तंत्र स्थापित किए हैं। अब, अगर उन्होंने यह कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि कर ली तो यह दोहरी गारंटी होगी।
शिशेंग ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ज्यादा गहरे सहयोग की तलाश के लिए दो एशियाई शक्तियों के लिए राजनीतिक आधार तैयार किया है। गौरतलब है कि सरकारी दैनिक ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जब तक अप्रैल और मई में देपसांग घाटी में दोनों सेनाओं के बीच तीन हफ्ते तक तनातनी की स्थिति पैदा नहीं हुई ,चीन की ओर से प्रस्तावित संधि स्वीकार करने से भारत हिचकिचा रहा था।
इसे आधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया कि आखिर इस साल मई में चीनी प्रधानमंत्री ली क्विंग की भारत यात्रा से पहले चीनी सैनिक भारतीय सीमा में क्यों घुसी थे। शायद यह पहला मौका है जब चीन के एक सरकारी दैनिक ने यह संकेत दिया है कि क्यों चीनी सैनिकों ने लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी में वास्तविक नियंत्रण रेखा में घुसपैठ की थी।
उधर, चाइना इंस्टीट्यूट्स ऑफ कंटेपररी इंटरनेशनल रिलेशन्स के रिसर्च फेलो फू शियाक्विंग ने कहा कि संधि पर हस्ताक्षर सीमा विवाद हल करने से इतर है।
शियाक्विंग ने कहा कि नया सीमा समझौता वास्तव में सीमा बलों को झड़पों या तनातनी से बचाने के प्रयास के तहत दोनों सरकारों के बीच के पिछले सीमा समझौतों का महज एक अनुपूरक है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, October 22, 2013, 16:08