Last Updated: Friday, February 28, 2014, 16:10

लंदन: ब्रिटेन के ससंद परिसर में एक बैठक में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के विवादास्पद अतीत पर एक विवाद छिड़ गया है। मानवाधिकार संगठनों ने कल संसद भवन के एक समिति कक्ष में मानवाधिकार संगठनों और ‘नरेन्द्र मोदी एंड द राइज ऑफ हिंदू फासिज्म’ के आयोजकों ने कल दावा किया कि चर्चा रद्द करने के लिए ब्रिटेन में उन्हें हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों से अत्यधिक दबाव और मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मानवाधिकार अध्ययन केंद्र के निदेशक चेतन भट्ट ने कहा कि मौत की धमकियों के मद्देनजर यह बैठक अत्यंत कठिन हालात में हुई। इससे यह उजागर होता है कि नरेन्द्र मोदी के समर्थक कुछ भी सहन करने में अक्षम हैं और स्वतंत्र अभिव्यक्ति का दमन करने की कोशिश कर रहे हैं।
बैठक के दौरान भट्ट ने मोदी की आरएसएस में जड़ें भी तलाशी, जिसे 2002 के दंगों के दौरान गुजरात में उनके मुख्यमंत्री के तौर पर निभाई गई भूमिका से जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के मुद्दे बहुत गंभीर हैं। भारत के चुनावों में क्या होता है वह मायने नहीं रखता।
नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है ‘सामाजिक कार्यकर्ता वर्ष 2002 के सांप्रदायिक दंगों में लोगों की रक्षा करने में तथा दंगों के लिए जिम्मेदार कई लोगों की गिरफ्तारी करने में गुजरात सरकार की नाकामी को लेकर लगातार चिंता जताते रहे। इन दंगों में 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे और इनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे। हालांकि अदालतों में चल रहे कई मामलों में प्रगति हुई।’
इसमें आगे कहा गया है ‘गुजरात सरकार ने 2002 में हुई हिंसा की जांच करने के लिए नानावती-मेहता आयोग नियुक्त किया। दिसंबर में गुजरात सरकार ने आयोग का कार्यकाल 21वीं बार बढ़ाया। अब यह कार्यकाल 30 जून 2014 तक कर दिया गया है।’ विदेश मंत्रालय ने कहा है कि गुजरात सरकार ने वर्ष 2002 में नरोदा पाटिया मामले में दोषी पूर्व मंत्री माया कोडनानी तथा अन्य को मौत की सजा सुनाने की मांग करने के लिए दी गई अपनी सहमति वापस ले ली। इस हिंसा में 97 मुस्लिम मारे गए थे। जांच एजेंसी ने जून में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल करने के गुजरात सरकार के कदम पर सवाल उठाया।
माया कोडनानी वर्ष 2002 की हिंसा के लिए दोषी ठहराई गई पहली वरिष्ठ राजनीतिज्ञ थीं और उन्हें अदालत ने 28 साल कैद की सजा सुनाई। रिपोर्ट में पिछले साल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा का भी जिक्र है। अगस्त और सितंबर में हुई इस हिंसा में 65 लोगों के मारे जाने और 42,000 लोगों के विस्थापित होने की खबरें हैं।
इसमें कहा गया है ‘एक मुस्लिम पुरूष और एक हिंदू जाट महिला के बीच यौन उत्पीड़न को लेकर हिंसा शुरू हुई और बढ़ती चली गई।’ (एजेंसी)
First Published: Friday, February 28, 2014, 10:05