Last Updated: Tuesday, November 19, 2013, 21:27

वाशिंगटन : अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में द्विदलीय प्रस्ताव पेश कर अमेरिकी सरकार से आग्रह किया गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के हनन के आधार पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को वीजा नहीं देने की नीति को बरकरार रख जाए।
प्रस्ताव में भारत का भी आह्वान किया गया है कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करे। इसमें अमेरिकी सरकार से कहा गया है कि भारत के साथ द्विपक्षीय सामरिक संवाद में इस मामले को शामिल किया जाए।
डेमोक्रेटिक पार्टी के कांग्रेस सदस्य कीथ एलिसन और रिपब्लिकन पार्टी के जो पिट्स ने संयुक्त रूप से इस प्रस्ताव को पेश किया है। मोदी को वीजा नहीं देने की नीति की पैरवी करने वाले इस प्रस्ताव को एक दर्जन से अधिक सांसदों ने अपना समर्थन दिया है।
साल 2005 में मोदी को राजनयिक वीजा देने से मना कर दिया गया था और इसके साथ ही उनके पर्यटन तथा कारोबारी वीजा को आव्रजन एवं नागरिकता अधिनियम के तहत रद्द कर दिया गया है। इस अधिनियम के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करने के लिए जिम्मेदार विदेशी अधिकारी को यात्रा संबंधी दस्तावेज प्राप्ति के लिये अयोग्य ठहराया जा सकता है।
प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव पेश करने के बाद एलिसन ने कहा, ‘‘प्रस्ताव को मिला द्वितीय समर्थन दिखाता है कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार अमेरिका के लिए प्राथमिकता हैं।’’ इस प्रस्ताव को एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र पर विदेश मामलों की उप समिति के पास भेजा गया है।
एलिसन ने एक बयान में कहा, ‘‘सभी भारतीयों को स्वतंत्र होकर अपनी पूजा पद्धति को अंजाम देने या अपना अपने हिसाब से आस्था बदलने का अधिकार होना चाहिए। भारत के श्रेष्ठ नेताओं ने अपने लोगों के बीच एकता को बढ़ाने का काम किया, न कि विभाजन को।’’
पिट्स ने कहा, ‘‘गुजरात में दंगे जैसी घटनाओं के पीड़ित इंसाफ की मांग करते हैं।’’ प्रस्ताव में भारत की समृद्ध धार्मिक विविधता और सहिष्णुता एवं समता से जुड़ी प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई गई है। इसमें 2002 के गुजरात दंगों में राज्य के मुख्यमंत्री मोदी की कथित भूमिका का उल्लेख किया गया है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, November 19, 2013, 21:27