Last Updated: Thursday, October 31, 2013, 15:20

वाशिंगटन : अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक राष्ट्र घोषित किए जाने की कड़ी चेतावनी दिए जाने के बावजूद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने मई 1992 में आईएसआई से कश्मीर में अपने गुप्त अभियानों को जारी रखने को कहा था। एक पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक द्वारा लिखी गई नई पुस्तक में यह खुलासा किया गया है।
किताब में कहा गया है कि अपने रूख में बदलाव लाने के बजाय, शरीफ ने जासूसी एजेंसी आईएसआई और सेना का इस तथ्य के साथ समर्थन किया था कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ सैन्य अभियानों को बंद नहीं कर सकता और अमेरिका की ओर से मिली ऐसी कड़ी चेतावनी की काट के लिए शरीफ ने अमेरिकी मीडिया तथा कांग्रेस से संपर्क साधने के लिए पहले कदम के तौर पर 20 लाख डालर की राशि आवंटित करने का फैसला किया था।
किताब में कहा गया है कि वास्तव में, शरीफ ने अपने तत्कालीन विशेष सहायक हुसैन हक्कानी को अमेरिका में लाबिंग के प्रयासों की जिम्मेदारी सौंप दी जिसे हक्कानी ने नामंजूर कर दिया और वह राजदूत के पद पर नियुक्ति के लिए श्रीलंका जाने को राजी हो गए। अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व दूत हक्कानी द्वारा लिखी गई किताब ‘मैग्नीफिशिएंट डिल्यूशन’ में यह खुलासा किया गया है जो अगले सप्ताह बाजार में आएगी।
मई 1992 के घटनाक्रम का आंखों देखा हाल बयान करते हुए किताब में बताया गया है कि अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री जेम्स बेकर ने इस संबंध में एक पत्र शरीफ को लिखा था। लेकिन शरीफ ने पहले इस पत्र की अनदेखी की।
दस मई 1992 को लिखे पत्र में बेकर ने चेतावनी दी थी कि अगर पाकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को अपना समर्थन बंद नहीं करता है तो अमेरिका उसे आतंकवाद का प्रायोजक देश घोषित कर सकता है। किताब में हक्कानी ने दस मई के पत्र का उल्लेख करते हुए लिखा है, हमारे पास ऐसी सूचना जो संकेत देती हैं कि आईएसआई तथा अन्य आतंकवाद में शामिल समूहों को लगातार साजो सामान का समर्थन मुहैया करा रहे हैं। (एजेंसी)
First Published: Thursday, October 31, 2013, 14:55