Last Updated: Tuesday, March 18, 2014, 11:20

बीजिंग : चीन के सरकारी मीडिया में आए एक लेख में भारत की विदेश नीति को अस्पष्ट और विरोधाभासी बताते हुए कहा गया है कि नई दिल्ली की विदेश नीति में दीर्घकालिक सोच का अभाव है।
इसके साथ ही यह भी लेख में कहा गया है कि नई दिल्ली द्वारा वैश्विक व्यवस्था में भागीदारी को लेकर हिचकिचाहट से इसकी प्रगति अवरूद्ध हो रही है। सरकारी ग्लोबल टाईम्स की वेबसाइट पर लिखे एक लेख में कहा गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने सीमा मुद्दों पर संयम से जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन चीन-भारत की सीमा पर भारत की ओर से अक्सर झगड़े शुरू किए जाते रहे हैं।
इसमें कहा गया कि इसीलिए जब भी हम बीजिंग और नयी दिल्ली के बीच आर्थिक संबंध मजबूत करने की बात करते हैं, चीन की ओर से कथित खतरा भारत के लिए अपनी सैन्य और परमाणु हथियारों की तैयारी के लिए एक बहाना बना रहता है।
लेख में कहा गया कि इस तरह के विरोधाभास कैसे परिभाषित होते हैं? सबसे पहले, नयी दिल्ली अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों के बारे में बमुश्किल ही दीर्घकालिक विचार करती है। यूक्रेन संकट पर भारत की घोषणाओं को विरोधाभासपूर्ण बताते हुए लेख में कहा गया है कि बदलती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भारत से संतुलन स्थापित करने वाले एक स्थिर क्षेत्रीय कारक की भूमिका की अपेक्षा की जाती है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, March 18, 2014, 11:20